लहू की होली
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”
क्षमा दया अब छोड़ो भइया। होली लहू की खेलो भइया।।
जो दुश्मन गद्दार देश के। न उनको अब झेलो भइया।
बहुत हुई ममता की बातें। बहुत निभी समता की बातें।।
ये दुष्ट पागल कुत्ते है। समझे भाषा जो है लातें।।
अब तकदीर न तोलो भइया। होली लहू की खेलो भइया।।
पहले देश के गद्दारों को। गोली से समझाना होगा।।
पूरे विश्व की बात कही तो। बोली से समझाना होगा।।
अब न चूको वहशी बनो। संगीनों को पेलो भइया।।
मरने दो अब उन कुत्तों को। टुकड़े पर अपने जो पलते।।
मौका आये तब ये दोगले। बन सपोले हमको डसते।।
फन को कुचलो जूते से अब। बोली गोली की बोलो भइया।।
व्यर्थ न जाये लहू रक्त बहा। जीवन दे इतिहास गहा॥
कायर काफ़िर हत्यारे जो। कर गर्जन हर गढ़ को ढहा॥
विपुल शपथ है भारत माँ की। बदला हर एक ले लो भइया॥
पूरा देश तुम्हारे संग है। ये सन्देश वाणी अभंग है।।
नही सहा जाता अब कुछ भी। नही कहा जाता क्या कुछ भी।।
उठ जाओ अब माँ के सपूतों। बन विकराल अब डोलो भइया॥
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