भला किस द्वार जाऊं मैं
भला किस द्वार जाऊं मैं
विपुल लखनवी नवी मुंबई।
हे गुरुवर छोड़ कर तुमको, भला किस द्वार जाऊं मैं।
तुम्हारी किरपा है अनुपम, भला किस भांति गाऊं मैं॥
दयालू तुम गुरू जी हो, सरीखा तुमसा नहीं कोई।
तुम्हारे द्वारे का शरणी, भला किस द्वारे जाऊं मैं॥
अजामिली, बाल्मीकी सम, पापी भी तूने हैं तारे॥
अधम मैं हूं मेरे गुरुवर, कैसे भव पार जाऊं मैं॥
तुकाराम, ज्ञान हे देवा, कहां वो सूर और तुलसी।
तेरी कृपा जो हो भगवन, सरीखा उन बन जाऊं मैं॥
न भक्ति मुझ में है गुरूवर, नहीं शक्ति पास है मेरे।
लगन एक नाम की तेरे, धरोहर अपनी पाऊं मैं॥
नहीं कोई मंत्र मैं जानूं, न पूजा अर्चन ही आये।
तुम्हारी कृपा मिले प्रभु जी, सफल होकर दिखाऊं मैं॥
विपुल सम शठ नहीं दूजा, नहीं कोई आलसी गुरुवर।
कृपा शिवओम् की होगी ये ही एक आस पाऊं मैं॥
गुरुवर तेरा ऋण ऐसा भला कैसे उऋण होऊं मैं।
तुम ही बस एक हो दाता भला किधर भिक्षा पाऊं मैं॥
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