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Thursday, January 2, 2020

भला किस द्वार जाऊं मैं

भला किस द्वार जाऊं मैं

विपुल लखनवी नवी मुंबई


तेरे इस द्वार को छोड़ू भला किस द्वार जाऊं मैं। 

तुम्ही जब कर्ता-धर्ता हो भला किसी को बुलाऊं मैं।।

जगत में कितना भटका हूं तुम्हारे दर पर आया हूं।

भला किसको मैं पूजू अब भला किस दर पे जाऊं मैं।।

तुम्हारे द्वार पर आकर प्रभु गुरु ने भी लीला की।

भला अब किसको छोडू मैं आरत भी किसकी गांऊ मैं।।

हे माता तेरी कृपा से जगत में सब कुछ है पाया।

कि अपने चरणों में रख लो तुझे यही गुहराऊं मैं।।

नहीं मेरा जगत कुछ सभी तेरी ही माया है

कि बचपन से ही पाला है तुझे क्या अब चढ़ाऊं मैं।।

विपुल की विनती है माता सदा तेरे चरण में हूं।

द्वारे पर पाल लो मुझको छवि सदा तेरी पाऊं में।।


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