कड़वे दोहे मातृ भक्ति पर
मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य
देवीदास विपुल उर्फ
विपुल सेन “लखनवी”
नवी मुंबई
बाकी दिन कोने पड़ी, है बेबस लाचार।।
चित्र खींच कर डालते आधुनिक श्रवण कुमार।
ढेरो मिली लाइक जो, भूले माँ का प्यार।।
यह कलियुग की देन है, नही है सच्चा प्यार।
कलियुग की औलाद हैं, माँ पर अत्याचार।।
दांत दिखाने के अलग, जैसे हाथी पाय।
झूठी वाणी डालकर, जग को ये भरमाय।।
दास विपुल यह कह रहा, किसे छलावा कौन।
परमपिता सब जानता, बेहतर बैठो मौन।।
सरवनकुमार जगत में, मिल जाये जो आज।
चरन पखारेगा विपुल, दावा करता दास।
दो जून रोटी दे दी, बहुतेरे मिल जाय।
पर अकेली खाट पर, माता पास न आय।।
नहीं समय मिलता उन्हें, मात दवाई लाय।
पर पत्नि संग घूमते, प्रतिदिन पिक्चर जाय।।
जिस दिन पूछा हाल क्या, पोपले मुख मुस्कान।
लख बरस जिये पुतर बहू, बलिहारी मां प्रान।।
नमन शतक उनको करूं, जिनके भाव सपूत।
मेरी वाणी है उन्हें, होते पूत कपूत।।
दास विपुल की प्रार्थना, मां को दो सम्मान।
पिता तुम्हारे पालक है, ऋण जिन वृक्ष समान।।
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