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Thursday, January 2, 2020

दीवाली कैसे हो सकती

दीवाली कैसे हो सकती

विपुल लखनवी


मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य

जब तक मन में उजियारा न।

दीवाली कैसे हो सकती।।

जब तक मन प्राण पियारा न।

दीवाली कैसे हो सकती।।


जब राम प्रभु मन का रावण।

मारें और वापिस न आयें।।

जब तक वनवासी राम प्रभु।

मुझको न तारे घर आयें।।

तब तक दीवाली व्यर्थ रही।

मन में हर्षाली न हो सकती।।


जब तक अहंकार का रावण जो।

मन में रहता प्रतिपल बढ़ता।।

जब तक सीता है कैद यहाँ।

असुरों का पहरा है सजता।।

जब तक हनुमान जलाए न।

लंका उजियाली न हो सकती।।


जब तक अंगद का पाव नहीं।

मन के दरबार जम पाता है।

जब तक ह्रदय में राम सेतु।

पूरा निर्मित हो पाता है।।

तब तक न मेरी दीवाली।

एक पूजा की थाली हो सकती।।


ये दास विपुल उल्टा चलता।

उल्टी बातें इसको भांति।।

न भीड़ भाड़ न जगत खेल।

बस एक ही है लुभा जाती।।

जब तक ब्रह्म जलाए न दीपक।

कैसे दीवाली हो सकती।।


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