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Wednesday, March 4, 2020

गायन्ती देवा गायत्री माता

गायन्ती देवा गायत्री माता 

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देवीदास विपुल

गायन्ती देवा गायत्री माता। जग की विधाता गायत्री माता॥

करतार जग की गायत्री माता।  भरतार जग की गायत्री माता॥

वेदों का सार तुम्ही हो माता। सृष्टि आधार तुम ही हो माता॥

आदिशक्ति तुझी में है समाई। भक्तजन की भक्ति गायत्री माता॥

जगत का ज्ञान तुम से ही प्रकटे। ज्ञान विज्ञान मां तुम्ही से उपजे॥

महिमा तेरी कोई न जाने।  पर सबको जाने गायत्री माता॥

पंचमुखों का मां रूप बनाया। असुरों को पाताल पैठाया॥

भक्तों को सदा सुख देने वाली। सब इच्छित देती गायत्री माता॥  

दास तेरा विपुल महिमा गाये। तुझको कभी न पलभर बिसराए॥

भक्तों को शक्ति देने वाली तू। ज्ञानी का ज्ञान गायत्री माता॥  

तेरे नाम से भय भी कांपे। काल डरे डरकर मुख को ढांपे॥

तू ही अमरता का वर देती। अमृत घट दे गायत्री माता॥

भोला शंकर तेरी स्तुति गाएं। ब्रह्मा विष्णु तेरा पार न पाएं॥

तू ही ब्रह्मा को ब्रह्माण बनाती। जगत चलाती गायत्री माता॥

यज्ञ का भाग तुझ ही से उपजे। स्वाहा सुधा तुझसे ही उपजे॥

तू ही सदा जग पालन करे मां।  तू ही जगदंबे गायत्री माता॥

सारा ज्ञान ध्यान तेरा जग में।  सारे तीरथ धाम हैं तुझमें॥

तू ही वेदों को जनम है देती। वेद का ज्ञान है गायत्री माता॥

प्रभु शिव ओम् ने गाया तुमको। नित्य बोधा नन्द पाया तुझको॥

साथ कभी न छूटे तेरा मां। सदा दे सहारा गायत्री माता॥

जब तक तन मेरे प्राण रहे मां। प्रतिपल तेरा ही ध्यान रहे मां॥

मुझे मुक्ति का मारग दिखाओ। कैसे हो मुक्ति गायत्री माता॥

हम शठ अज्ञानी बालक हैं तेरे। महा आलसी कर पाप घनेरे॥

पर तेरी शरणी आन पड़े मां। शरण  में ले लो गायत्री माता॥

गीता में प्रभु कृष्ण ने गाया। मंत्र गायत्री सर्वश्रेष्ठ बताया॥

भक्त को ज्ञान सदा देती रहना।  ज्ञान दायक है गायत्री माता॥

जो जन आरती गायत्री गावे।  प्रेम सहित माता को ही ध्यावे॥

सभी मनोरथ होते हैं पूरित। फल दायक हैं गायत्री माता॥  

 




Monday, March 2, 2020

आत्म अवलोकन

आत्म अवलोकन 

विपुल लखनवी


सुमनों के बीच आकार आज मैं इठला गया हूं।

सूंघकर मादक सुगन्ध अकिंचन ही इतरा गया हूं॥

 

मैं समझने यही लगा था मैं ही खुद हूं बागवां।

तितली की चाह में दौड़ा न मिली बौरा गया हूं॥


थक गया मैं कुछ चलकर दोपहर की तेज धूप में।

छांव की कीमत कुछ समझी जब उसको पा गया हूं॥ 

 

रात्रि नीरव चल पड़ा था जुगनुओं की भीड़ संग।

इक कतरा रोशनी को पाकर ही घबरा गया हूं॥


नाते रिश्ते जो मिले थे दुनियादारी दे गए।

पर जगत के साथ चलकर उनको भी निभा गया हूं॥ 

 

जख्म गहरे जो मिले थे टीस ऐसी दे गए कुछ।

गलत सही कुछ भी किया इलाज खुद ही पा गया हूं॥


दुनिया को पढ़ता रहा पर खुद को ही न पढ़ सका।

खुद रहा अनपढ़ सदा दूजे को समझा गया हूं॥ 

 

है विपुल सब कुछ निराला गणित का नहीं सूत्र है।

जिन्दगी की दौड़ में सबसे पीछे आ गया हूं॥



हिंदुओं को यक्ष सीख: किस तरह से शोक मनाएं?

हिंदुओं को यक्ष सीख: किस तरह से शोक मनाएं?  

                      विपुल लखनवी

आओ मिलकर अभ्यास करें, हम किस तरह से शोक मनाएं।
आओ मिलकर अभ्यास करें,  हम किस तरह से रोएं गाएं॥ 
कभी कहीं मार काट मचे,  हम किस तरह से जान बचाएं।
घर में घुस जब हमला होय,  हम किस तरह से बच रह पाएं॥ 

 

बचपन से है ये ही पढाया ,  सत्य अहिंसा का मार्ग सबल।
नहीं सताओ उसे कभी भी, जो होता  है तुम से निर्बल॥
किन्तु अब तो यही समझना,  सबल हमें बनना ही होगा।
बहुत देर हुई जगते जगते,  समय रहते तो जग जाएं॥
आओ मिलकर अभ्यास करें, हम किस तरह से शोक मनाएं॥ 


 
हर गली सड़क गद्दार हैं बैठे,  संभल कर चलना होगा।
इतिहास से नहीं सीखे कुछ,  फिर से उसे गढ़ना होगा॥
जब तक खुदी पर न हो हमला,  भाषण देना आदत अपनी।
भाषणबाजी बंद करो अब, सत्य स्वीकार कैसे कर पाएं॥
आओ मिलकर अभ्यास करें, हम किस तरह से शोक मनाएं॥ 

 

मरे पड़ोसी हमको क्या है, ओढ़ के सोना आदत है।
हम पालेंगे भाई चारा, चारा बन जाएं आदत है॥ 
पाकिस्तान में कितने खुश हम,  जनसंख्या हिन्दू भरपूर है।
समय लगेगा पूरा मिटने में, पूरे हम कैसे मिट जाएं॥
आओ मिलकर अभ्यास करें, हम किस तरह से शोक मनाएं॥ 


 
बंगलादेश में देखो कैसे,  हिन्दू दिवाली मनाते हैं।
उसी राह भारत को चलाना,  बार-बार दोहराते हैं॥
जो सोते से जगाने आते,  उनको हम कुत्ता समझे।
जो हम को समझाने आते,  उनको अपने घर से भगाएं॥
आओ मिलकर अभ्यास करें, हम किस तरह से शोक मनाएं॥ 

 

लड़ने का अभ्यास आपस में,  दलित हिन्दू बनकर ले लें।
जब तक पूरे नष्ट न होगें,  शपथ मरने की हम ले लें॥
कितना सुंदर दृश्य दिखेगा, जब देश सीरिया हो जाए।
लाल नदी चारों ओर बहेगी,  तब ही खुश हो पाएं॥
आओ मिलकर अभ्यास करें, हम किस तरह से शोक मनाएं॥ 

 

तब ही तरक्की देश करेगा,  परचम अपना लहराएगा।
प्यारा तिरंगा अतीत बनेगा,  भगवा नजर नहीं आएगा

करें प्रयास दलित हिन्दू यह, हम कभी एक न हो पाएं।
तब ही तरक्की देश करेगा,  परचम अपना लहराएगा
 
प्यारा तिरंगा अतीत बनेगा,  भगवा नजर नहीं आएगा॥ 


करें प्रयास दलित हिन्दू यह, हम कभी एक न हो पाएं।
तब तक विपुल मुफ्त की बिजली,  पानी संग मौज मनाएं॥
आओ मिलकर अभ्यास करें, हम किस तरह से शोक मनाएं

तब तक विपुल मुफ्त की बिजली,  पानी संग मौज मनाएं॥
आओ मिलकर अभ्यास करें, हम किस तरह से शोक मनाएं॥ 






Sunday, March 1, 2020

खून बहाने से अच्छा है दूध बहाया जाए

पोस्ट पर मेरा जवाब।

खून बहाने से अच्छा है दूध बहाया जाए

विपुल लखनवी। नवी मुंबई।


खून बहाने से अच्छा है दूध बहाया जाए। 

बू फैलाने से अच्छा है फूल चढ़ाया जाए।। 

 

सड़क पर चिल्लाने से अच्छा मंदिर जाया जाए।

काले टीके से अच्छा इक तिलक लगाया जाए।।

 

घर को जलाने से अच्छा इक दीप जलाया जाए।

पशुओं को खाने से अच्छा मीठा खाया जाए।।

 

घृणा फैलाने से अच्छा भजन ही गाया जाए।

गुजरों पर रोने से अच्छा प्रभु को रोया जाए।।

 

कितनी सुंदर बातें हैं मूरख न देखा करते।

माथापच्ची से अच्छा शिव शंकर गाया जाए।।


शिवाजी अमर हैं।

शिवाजी अमर हैं।  

 सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"


 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
 सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
ब्लाग: freedhyan.blogspot.com,  फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet

 

शिवाजी अमर हैं।
दिलों में बसर हैं।। 
दुष्टों की कबर हैं।
हिंदुत्व की खबर हैं।।


काम में जबर हैं।
शूर में गबर हैं।।
धूर्त की घबर हैं।
ईमान में सबर हैं।।


युद्ध में पुरोधा हैं।
विपुल का घरौदा हैं।।
भगवा के साथ हैं।
गरीबों के हाथ हैं।।


न कोई इतिहास हैं।
कलम निवास हैं।।
अनेकों नमन हैं।
देश का चमन हैं॥ 


हे वीर शिवा जी।
कब आगमन है॥
तुमको है आना।
जगा कर जाना।। 


तुम्हें हम पुकारें।
खडें तेरे द्वारें॥
देश को बचाना।
हे वीर नायक।
जल्दी ही आना॥ 

 
जय जय शिवा जी महाराज।

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