रावण कृत रूद्र तांडव स्तुति काव्य रूपांतर
रावण कृत रूद्र तांडव स्तुति काव्य रूपांतर
देवीदास विपुल उर्फ
विपुल सेन “लखनवी”
नवी मुंबई
सघन जटा प्रभाव बटा गंगाधर नाम है।
कंठ धो शीतल दे गंगा का ही काम है।।
विषलै नाग कण्ठ डाल डमरू तांडव करे।
ऐसे शिव शंकर सदा सबका ही हित करे।।
तीव्र धार कर प्रहार गंगा सिर पर आ रही।
अग्नि की प्रचंड ज्वाल तीव्र होती जा रही।।
बालचंद्र कीरीट शिर शोभा धारण करे।
ऐसे शिव शंकर सदा वास मम हृदय करे।।
हिम की पुत्री हिरदय पाश जिन रूप आ सजे।
माथे जिन सृष्टि सारी प्राणी सब जा बसे।।
लेश मात्र दृष्टि जिनकी कष्ट निवारण करे।
ऐसे शिव शंकर सदा मुझे भी कृपा करे।।
प्राणाधार पिता जगत सर्प जटा साथ ले।
गज चर्म भूषणमणी विषधर भी प्रकाश दे।।
हे शिव शंकर प्रभु द्वारे तेरे आ गिरे।
ऐसे शिव शंकर सदा भक्ति व आनंद भरे।।
शिवचरण विष्णु सदा इंद्र संग चंदन घिसे।
देवता पुष्प लेकर शिव का ही वंदन करे।।
लाल सर्प जटा जिनकी मन में आनंद करे।
ऐसे चंद्रशेखर सदा हृदयानंद ही भरे।।
इंद्र अहंकार शिव ने धूल धूसरित किया।
अग्नि ज्वाला मस्तक से भस्म काम को किया।
जिसे सभी हैं पूजते गंगा चंद्र धारण करे।
ऐसे शिव शंकर मुझे सिद्धियां वरण करे।।
कामदेव धृष्टता चतुर अति जिसको भा गया।
शिव पार्वती का ध्यान भंग करने आ गया।।
खोल कर त्रिनेत्र ज्वाला काम भस्म जो करे।
ऐसे शिव शंकर मेरे तिलक विपुल ही करे।।
कंठ जिनके मेघ सम अमावस्या काला है।
गजचर्म बालचंद्र गंगा शोभा वाला है।।
जो जगत विपन्नता स्वयं कांधे आ रखें।
ऐसे शिव शंकर से संपन्नता मुझको मिले।।
जिनका कण्ठ और कंधा कमलनील सा खिले।
त्रिपुरासुर जो विनाशक काम दण्ड जो मिले।।
दक्षयज्ञ अंधक असुर गजासुर निष्प्राण करे।
ऐसे मृत्युजीत शिव मन को प्रकाशित करे।।
कल्याणमय कर्म कर जो सदा अविनाशी है।
सर्व कला प्रवीण जो दर्पदलन विनाशी हैं।।
भक्त रक्षा दौड़कर यमराज रूप भी धरे।
ऐसे शिव शंकर का सदा मन सुमिरन करे।।
सर्प की फुफकार से ललाट प्रचंड अग्नि हो।
मृदंग मंगलकारी बज धिम ध्वनि करे जो।।
विशाल विषधारी जिसे सदा ही शोभित करे।
ऐसे शिव शंकर सदा हर रूप शोभित करे।।
शैय्या पाषाण कोमल सर्प या मोतीमाल।
माणिक्य रत्न मृदा हो तिनका या कमल डाल।।
प्रजा राजा मित्र शत्रु एक ही दृष्टि धरे।
ऐसे शिव शंकर सदा मन मेरा भजन करे।।
गंगा के कछार कुंजन में निवास मैं करूं।
निष्कपट निर्भीक हो शिव का जाप मैं करूं।।
सिर अंजलि धारण कर नेत्र जिन चंचल करे।
ऐसे शिव शंकर सदा अक्षय सुख मुझे वरे।।
देव कन्या सिर गूंथे पुष्पों की माला झरे।
सुगंधयुक्त राग संग मनहर दृश्य आ मिले।।
रहस्यमय शिव का धाम शिवपुरी गूंजन करे।
ऐसे शिव शंकर सदा हृदय परमानंद भरे।।
शिव विवाह मंगल गान परम श्रेष्ठ मंत्र ज्ञान।
पाप भस्म करे जो बड़वानल संयंत्र जान।।
आठों महासिद्धियां स्त्री बनें नर्तन करे।
ऐसे शिव शंकर सदा नाश दुख विजय वरे।।
उत्त उत्त उत्तम जो शिव तांडव स्त्रोत वो।
पाठ श्रवण मात्र करता है सदा पवित्र जो।।
परमगुरू शिव मिले मुक्त कर मोक्ष को वरे।
ऐसे शिव शंकर सदा भ्रममुक्त हमें करे।।
प्रातः शिवपूजन अंत रावणकृत स्त्रोत गान।
लक्ष्मी स्थिर हो सदा मिले ज्ञान धन सम्मान।।
रथ गज घोड़ा हाथी भक्त सारे सुख भरे।
ऐसे शिव शंकर सदा किरपा मुझ पर करे।।
दास विपुल हाथ जोड़ अंतरमन हृदय मोड़।
काली गुरू आराधना शिव सहित साधना ।।
शिव ओम नित्यबोध आनंद यह जीवन करे।
ऐसे शिव शंकर सदा स्वयं सा मुझको करे।।
👌👌👌👌👌
ReplyDeleteBahut sundar
ReplyDeleteThanks. Read more
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद उत्साहवर्धन हेतु। कृपया टिप्पणी करते रहें साथ ही औरों को शेयर करें। धन्यवाद
ReplyDeleteअति उत्तम
ReplyDeleteहर हर महादेव