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Thursday, January 2, 2020

मत छीनो बच्चे का बचपन



मैं यहां पर एक अपील करना चाहता हूं। यदि आप चाहते हैं कि आप के बच्चे महानगरों की बेबी सिंटिग में अनाथों की तरह न रहें। तो आप अपने मां बाप, सास ससुर, बुजुर्गों को साथ रखें। यह सही हैं आपकी सोंच उनसे मेल खाये यह जरूरी नहीं पर आप अपनी संतानों को यदि सही रास्ते पर न ला सके तो आपका पैसा बेकार। आपने आये दिन बाईयों के अत्याचार तो टी.वी. पर देखे ही होंगें। अत: आप इस बात पर जरूर ध्यान दें। इस विषय पर मेरी एक कविता है जो किसी भी भाषा में किसी भी साहित्यकार ने न सोंचा होगा। 

इस कविता में बेबी सिटिंग में रहनेवाली एक छोटी बच्ची मां बाप से क्या कहना चाहती है। उसका वर्णन किया है। पद्म विभूषण डा. गोपालदास “नीरज” ने इस कविता पर मार्मिक भाव से मुझे प्रशस्ति पत्र देते हुये मुझे आदेश दिया था कि इस कविता को अधिक से अधिक पढूं प्रचार करूं। अत: इसको नीचे दे रहा हूं।

मत छीनो बच्चे का बचपन

(बेबी सिटिंग में रहनेवाला बच्चा मां बाप से क्या कहता है )
कवि:  विपुल सेन लखनवी, मुम्बई
                          (09969680093)

मम्मी पापा बँगला ले लो,  खूब कमा लो चाँदी सोना l
मेरा बचपन तुमने छीना,  दिन बीते मेरा खाली सूना  ??
                     
मम्मी कल मैं जब रोई थी, राजू हंसे आंटी सोई थी।
 नहीं लगाया सीने से जब, पडे मुझे थे आंसू पीना॥
                    मेरा बचपन तुमने छीना॥

रोते रोते चुप हुई थी, शायद मुझको भूख लगी थी।
मुझको खाना नहीं सुहाता, भूखे पेट पडा था सोना
                    मेरा बचपन तुमने छीना॥

मां मुझको जब ज्वर आया था, जाने क्यूं मन घबराया था।
मैं तो जानूं तेरी गोदी, वही है मेरा स्वर्ग बिछौना ॥
                    मेरा बचपन तुमने छीना॥

मेरे नन्हे हाथ हैं मैय्या, सदा तुम्हारे साथ हैं मैय्या।
सूरत तेरी सबसे न्यारी, तेरे संग चाहूं मैं जीना॥
                    मेरा बचपन तुमने छीना॥

नहीं चाहिये मुझको कुछ भी, न मांगू मैं खेल खिलौना।
मम्मी तेरी दौलत मैं भी,  मैं भी तेरा सोना गहना॥
                  मत छीनो बचपन यह सलोना॥

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