एक नया अंदाज (हास्य)
एक नया अंदाज (हास्य)
विपुल लखनवी, मुम्बई 09969680093
मुस्कुरा ले गुनगुना ले, एक नए अंदाज में,
कैसे भी पैसे कमा ले, एक नए अंदाज में.
भाई बने कसाई बने, कुछ भी बने सब माफ है,
दो चार चैरिटी शो करा ले, ले, एक नए अंदाज में.
भूकंप तो आया गया, ये तो होता रहता है,
राहत का पैसा भी खा ले, एक नए अंदाज में.
कब से तू पढता रहा, कितनी पुरानी कविता को,
एक नई कविता बना ले, एक नए अंदाज में.
न मिली कुछ पंक्तियां, मायूस न हो लखनवी,
किसी की कविता चुरा ले, एक नए अंदाज में.
कबसे चप्पल घिस रहे हो, पेमेंट अबतक न मिला,
आयोजक के जूते चुरा ले, एक नए अंदाज में.
भैस को इतना दूहा, दूध बाकी न रहा,
यूरिया से इसको बना ले, एक नए अंदाज में.
गेहूं चावल कम पडे, न फिक्र इसकी कर ले तू,
जानवरों का चारा ही खाले, एक नए अंदाज में.
कबसे आहें भर रहे हो, देखकर कमसिन पडोसन,
होली में रंग ही लगा ले, एक नए अंदाज में.
उम्र चाहे कुछ भी हो दिल जवां रहता है पर,
नेता बन अय्याशी मना ले, एक नए अंदाज में.
दे गया एक दाग काला जो गया बीता समय,
अब तो मानवता बचा ले, एक नए अंदाज में.
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