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Thursday, January 2, 2020

स्वार्थ

स्वार्थ

कवि विपुल लखनवी


जिन मुगलों से लोहा लेकर,

वीर शिवा जी डोले थे।

राणा पृथ्वी काल बन गए,

महादेव जी बोले थे।।


आज उन्हीं के वंशज बनकर,

वो आदर्श सिखाते हैं।

पर सत्ता के मोहपाश में,

गद्दारी कर जाते हैं।।


खून उन्हीं का नहीं उबलता,

जैसे बर्फ का पानी हो।

पर नारा ले वीर शिवा का,

झूठी जो बेईमानी हो।।


अपनी हठ पर मरने वाली,

लक्ष्मी बाई मराठी थी।

नहीं झुकी दुश्मन के सामने,

हाथ में केवल लाठी थी।।


दुखी कलम ये विपुल जो लिखती,

शब्द नहीं जो लिख पाऊं।

इतनी घिनौनी राजनीति से,

हाथ जोड़ चुप हो जाऊं।।


किंतु मन की दशा व्यथित हो,

और कवि की बानी हो।

देश प्रेम की खातिर जीता,

विपुल कलम कुर्बानी जो।।


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