सन्नाटा
सन्नाटा
देवीदास विपुल उर्फ
विपुल सेन “लखनवी”
नवी मुंबई
अभी कहीँ इस सन्नाटे पर
जब कुछ लिखने मैं बैठा हूँ।
मन में सन्नाटा पाकर अपने
शायद मन में मैं ऐंठा हूँ।।
यह सन्नाटा कितना खोजा
तनिक नहीँ मिल पाया है।
सन्नाटे को प्राप्त करूँ मैं
जीवन यूँही गंवाया है।।
मन को मैंने कितना साधा
सन्नाटे की शरण मिले।
नहीँ मिला यह सन्नाटा तब
गुरू चरणो मे आन गिरे।।
शायद यह सन्नाटा फिर भी
पूरा मुझको प्राप्त नहीँ।
इस सन्नाटे में सन्नाटा
शायद मुझको मिले कहीँ।।
क्या तुम सन्नाटा दे पाओगे
मेरे साथी कुछ तो बोलो।
सन्नाटे में सबको मिलना
कुछ अपने को भी तोलो।
विपुल विपुल सन्नाटा खोजे
शायद यह मिल जायेगा।
सच कहता हूँ मेरे मित्रों
जीव सफल हो जाएगा।।
No comments:
Post a Comment