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Tuesday, October 13, 2020

हिंदुत्व की व्याख्या (काव्यात्मक)

 

हिंदुत्व की व्याख्या

 विपुल लखनवी द्वारा हिंदुत्व की व्याख्या

हिंदू जाग जाओ संभल जाओ

 
 

मूल धर्म मानव का हिंदू,  हिंदू जन्म है लेता।

हिंदू ही बस मूल धर्म है हिंदू जग का प्रेणता।।


मानव बनो सभी है तेरे, हिंदू है सिखलाया।

कभी किसी पर हिंसा न हो, यही है बतलाया।।


हिंदू मतलब सत्य मार्ग है खुद अपने को जानो।

सभी तुम्हारे जग में भाई, सबको अपना मानो।।


पहले भूखे को रोटी दो फिर तुम रोटी खाओ।

श्वान गाय कौवा या चींटी सब की भूख मिटाओ।।


सब में तुम अपने को देखो, अपने में दूजे को।

सभी जीव में देव बसे हैं, कहीं नहीं तीजे को।।


सभी धर्म का आदर करना, हमको ये सिखाया है।

मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारा, सब में शीश झुकाया है।।


किंतु कुछ ऐसे भी होते, दानवता सिखलाते।

उनकी शिक्षा ग्रहण करी तो दानव ही बन जाते।।


एकमात्र तुमको है जीना, बाकी सब को मारो।

पूरी धरती तुम ही भोगो,‌ दया दीनता टारो।।


हिंदू धर्म मिटाओ जग से, मतलब मानवता नष्ट करो।

झूठ मक्कारी फरेब करो, उनको तुम सब भ्रष्ट करो।।


एक बार हिंदू हो जाओ फिर इंसां बन जाओ।

तभी शांति इस जग में होगी सुखमय जीवन पाओ।।


जो सीधे सज्जन होते हैं, पेड़ वही काटे जाते।

हिंदू सज्जन धर्म जगत में, सभी इसे है बांटे।।


दुश्मन को तड़पा कर मारो कौन धर्म यह सिखलाए।

धरती पर आतंक मचाओ, कौन धर्म यह बतलाए।।


आज विपुल यह समय है आया, हिंदू को जगना होगा।

वरना इनकी खैर नहीं है घुट घुट कर मरना होगा।।


कायरता का मतलब गर कोई, अहिंसा बतलाए।

वह न समझे धर्म का मतलब जो न खुद को बचाए।।


विपुल अब जागो हिंदू तुम सब पुनः नई हुंकार भरो।

धर्मो रक्षति धर्म को जानो, दुश्मन का प्रतिकार करो।।

 

 

अजीब किस्म की गरीब दुनिया

 अजीब किस्म की गरीब दुनिया

विपुल लखनवी


फेंको फेंको कुछ भी फेंको। सब चलता है इस दुनिया में॥

गली गली ज्ञानी बैठें हैं। पर न ज्ञानी मिले दुनिया में॥

सब खोलें हैं अपनी दुकान। राम नाम महिमा नहीं जान॥

बन चेला हूं गुरु मैं तेरा। मुझको अपना गुरू तू मान॥

विपुल खड़ा अचरज में देखे। उलटी वाणी सबकी देखे॥

दूजे को उपदेश बताते।  खुद नहीं रत्ती भर हैं सीखे॥

अजीब खेल है यह संसारी। लालच से जगती है हारी॥  

सभी दिखें मन जो है निर्धन।  कैसे हडपे दूजे का धन॥  


एक लम्बा पद : साधो! ले लो राम का साथ

 

 एक लम्बा पद : साधो! ले लो राम का साथ।

विपुल लखनवी 

मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य

                              साधो! ले लो राम का साथ।

जिसके मन में राम नहीं वह,  जग में रहता अनाथ।  

सियाराम ही शक्ति स्वरूपा, शिव भी जपे दिन रात॥

राम नाम को जपते जपते, तू हो अपने साथ।

राम नाम तेरी श्वास बसे, कर मुझपर विशवास॥

कितने पापी तार दिये है, राम नाम जिन्हें पास।   

रोम रोम में वो बसता है, पकड़े बढाकर हाथ॥          

रासी रगड़ रगड़ से घिसकर, पत्थर भी घिसै जात।

मन को रगड़े राम नाम से, राम नाम सौगात॥            

बाल्मीकी ने कथा सुनाई, तुलसी लिखी गाथ।

केवट शबरी को भी तारा, पूछे न कोई जात॥  

अपने भीतर उसे पकड़ ले, कभी बाहर न आये।

दास विपुल उसे पकड़े छोड़े, जगत परिपंच दे मात॥

नित्यबोधानंद गुरूवर, कृपा शिवोम् मिल जाये।
दास विपुल का जीवन तर दे, विनती करूं दिन रात॥ 



Monday, October 12, 2020

एक पद : राम नाम सुखदाई साधु

 

 एक पद : राम नाम सुखदाई साधु

विपुल लखनवी 

मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य

 

                                राम नाम सुखदाई रे साधु।

रामनाम इक सत्य भया जग,  शेष जगत दुखदाई।

कहत सदा से सुरमुनि जग में, राम नाम अधिकाई॥

साधु रामदास अस धारा, बांकुर शिवा बनाई।

राम नाम को जपते तुलसी, रामचरित जग गाई।।

राम नाम ही जपत कबीरा,  महायोगी बन जाई।

राम नाम की महिमा गाकर, गुरु नानक गुरुआई।।

कितने पापी तर के जाएं,  राम नाम को गाकर।

विठ्ठल विठ्ठल तुका जपे जब,  हरि के दरशन पाई।।

राम कहो चाहे कृष्ण कहो,  राम नाम जप जाई।

नाम किसी भी देव का ले लो,  राम नाम भरपाई।।

देवीदास विपुल ही पापी, राम विमुख जगजाई।

हैं हनुमत सदा ही सहायक,  महिमा राम जताई।।

चेन से चैन नहीं

 चेन से चैन नहीं 

विपुल लखनवी 

चेंन चैन नहीं दे सके, पहनो यह दिन रात।

राम नाम के बैन से, शान्ति मिलती आप।।

चेंन एक जंजीर है, स्वर्ण रजत या लौह।

यह बंधन है ग्रीव में, मुक्त नहीं है वोह।।

प्रभु नाम ही काटता, जगती के जंजाल।

चैन तभी पा पायेगा, मूरख मन में पाल।।

काल कोरोना मिल गया, कर इसका सदुपयोग।

दास विपुल की मान लें, कर ले तू परयोग।


विपुल लखनवी का उलट पद

  विपुल लखनवी का उलट पद

 मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य

                                साधो हरिनाम दुखदाई।  

हरिनाम सुन नेत्र सजल भये,  हिरदय टीस उठाई।।

हरिनाम की बाजे बांसुरी , जग में मैं बौराई।

मैं बिरहन एक हरिनाम की, उर हरिनाम लगाई।

नेह नाते टूटे जगत के, जग में होत हंसाई।।

जित देखू तित हरि ही दीखे, चहुंदिश श्याम दिखाई।

मैं बावरिया रहूं सुलगती, श्वांस कबहुं रुक जाई।

हर धडकन में हरि डोलत है, हरित हरी हरियाई ।

वह निष्ठुर निरमोही ऐसा, नहीं करें कुड़माई॥

अब पछताऊं हिरदय देकर, जीवन उत दे आई।

मत करियो तुम प्रेम हरि संग, वह निष्ठुर हरजाई॥

यह‌ कैसी है लीला हरि की, प्रेम करो तो भागे।

दास विपुल हरिनाम लुटा है,  हरिनाम मिटी जाई॥


 

 

मौन में वो कौन

 मौन में वो कौन

विपुल लखनवी

मौन में वो कौन है जो गूंजता उर में मेरे।

इस हृदय में कौन रहता पास रहता जो मेरे॥

इक कहानी बन चली है मौन से चुपचाप उठकर।

है नहीं नायक कहीं भी प्रश्न यही मुझको घेरे॥

वाणी मेरी मौन है और शब्दों में परिहास है।  

मूक रहकर कौन गाता गीत जो ठहरे सुनहरे॥

नहीं उसे मैं जान पाऊं जीवन मांझी कौन है।

क्या सफल होगा विपुल हैं कौन से चेहरे मेरे॥