योगी कौन
योगी कौन
विपुल लखनवी
जो ब्रह्म में लीन रहते हैं, वे योगी ही कहाते हैं।
जगत में लीन जो रहते, वे भोगी ही बन जाते हैं।।
मगर जो बीच में रहते, योगी के भेष में भोगी।
साधु वेश ले रावण, सीता को चुराते हैं।।
विपुल न कुछ समझ पाता, जगत की रीति है कैसी।
गुरू बनने की चाहत में, कहीं कुछ भी सुनाते हैं।।
जिन्हें है न पता कुछ भी, गुरू की सीमा क्या होती।
शाने शौकत की खातिर, दुकानें ये चलाते हैं।।
शायद यही है लीला, कलियुग नाम है इसका।
भोली भाली है जनता, मूरख तो ये बनाते हैं।।
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