यक्ष jnu
विपुल लखनवी
धंधे का सुंदर स्थल है। पाप भरा है सारा।।
मुझको मेरा jnu जो।सब दुनिया से प्यारा।।
रोज सबेरे न उठता हूँ।दोपहर को जग जाऊं।।
दारू से फिर कुल्ला करूँ।चिकन तंदूरी खाऊं।।
रोज नई लड़की मिल जाती। घूमूँ दिल्ली सारा।।
मुझको मेरा jnu जो।सब दुनिया से प्यारा।।
पैसे की कुछ कमी नहीं।चंदा खूब मिल जाये।।
भारत के टुकड़े हो जाएं।नारा बस ये ही लगाएं।।
गद्दारों दुष्टों का साथ है।उनपर जीवन वारा।।
मुझको मेरा jnu जो।सब दुनिया से प्यारा।।
जनता बिल्कुल बेवकूफ है।टैक्स जो देने आती।।
भोली सूरत मुझे बनानी।टीचर यह सिखलाती।।
भारत को बर्बाद है करना।यह उद्देश्य हमारा।।
मुझको मेरा jnu जो।सब दुनिया से प्यारा।।
हिन्दू मेरा अव्वल दुश्मन।सत्य पाठ सिखलाता।।
पर मुझको पश्चिमी सभ्यता।पाठ वोही है भाता।।
बिन ब्याह के माता बनती। दृश्य है सुंदर न्यारा।।
मुझको मेरा jnu जो।सब दुनिया से प्यारा।।
विपुल विवेकानन्द न भाते। भाते लेनिन वादी।।
फौज को गोली जब मिलती। मेरा हिरदय लुभाती।।
ऐसे अपना दिन कटता है। जीवन काटू सारा।।
मुझको मेरा jnu जो।सब दुनिया से प्यारा।।
भगवा से तो घृणा विपुल है। साधु मुझे न भाए।
आग लगा दूँ सब साधू को। मेरा बस चल जाये।।
ऐय्याशी में खलल जो डाले। दुश्मन समझू यारा।।
मुझको मेरा jnu जो। सब दुनिया से प्यारा।।
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