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Thursday, January 2, 2020

हिंदुत्व का पराभव

हिंदुत्व का पराभव

विपुल लखनवी का आक्रोश

 

जब हिन्दू का शीश मुकुट, दुश्मन दर झुक जाता है।

वीर शिवा राणा की पीठ में, एक छुरा घुप जाता है।।


उनके नाम की पूजा करते, आदर्श उसे बतलाते हैं।

किंतु धन सत्ता की खातिर, चरणों पर गिर जाते हैं।।


आज समझ में यह आता है, भारत क्यो कर अभागा था।

दुश्मन से समझौता करके, तीर अपनो ने दागा था।।


वह इतिहास जो भूले जाने की होती तैयारी थी।

नहीं करेंगे पुनः वह गलती, लोगो की खुद्दारी थी।।


किंतु स्वार्थ सत्ता की होड़ में, कसमें वादे भूल गये।

कहीं किसी नर्तकी समान, सब गोदी में झूल गये।।


विपुल कलम आहें है भरती, हिन्दू रक्षक बिक जाता।

बिन बाप अनाथ हो जैसे, हिन्दू मराठी ठग जाता।।



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