कवि विपुल “लखनवी” / Kavi Vipul Luckhnavi
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Monday, January 20, 2020
हौले से सब चुक गया
हौले से सब चुक गया
देवीदास विपुल
उर्फ
विपुल सेन “लखनवी”
नवी मुंबई
हौले से सब चुक गया मेरे ख़जाना पास था।
वह ख़जाना लुट गया सोचा जो अपना खास था।
धीरे-धीरे लुट गया वह जिसकी इज्जत न करी।
खत्म होता था ख़जाना किंतु चिंता नहीं करी।।
जिसको मैंने आम समझा वही बिल्कुल खास था।
हौले से सब चुक गया मेरे ख़जाना पास था।
मैं फिरा और भागता रहता जिसे न जाना मैं।
वह कभी मेरा न निकला जिसको अपना माना मैं॥
असली दौलत थी जो मेरी न कभी अहसास था।।
हौले से सब चुक गया मेरे ख़जाना पास था।
आज मैं यही सोचता हूं मूर्ख यह कितना जगत।
जो है असली धन ख़जाना उसकी न जग को परख।
अंत में वह अपना निकला तनिक नहीं विश्वास था।
हौले से सब चुक गया मेरे ख़जाना पास था।
न कभी ये ही सोंच पाया देख लूं अपनी बही।।
न कभी सोंचा और समझा कौन दौलत है सही।
समझा कीमत विपुल दौलत जब दिखे यम फांस था।
हौले से सब चुक गया मेरे ख़जाना पास था।
सांस है असली ख़जाना इनको तू पहचान ले।
यही तेरा साथ देगी इसको ही तू जान ले।।
सांसों की माला बना ले फेर माला नाम का।
हौले से सब चुक गया मेरे ख़जाना पास था।
दास विपुल भटका कितना यही जगत देखे नहीं।
तब मिली गुरू नाम बूटी यह जगत सोंचे नहीं।।
गुरू बूटी तू भी चख ले समझ क्या यह राज़ था।
हौले से सब चुक गया मेरे ख़जाना पास था।
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