कुछ दोहे दिल से:
कुछ दोहे दिल से:
कवि : विपुल लखनवी, मुम्बई MOB : 09969680093
हिन्दू होता सौभाग्य से पापी जनम न पाये।
मंदिर जा टीका लगा, हिन्दू बना न पाये।।
वोट चोट ऐसी करे, बिना शोर की मार।
कुरसी के नाटक करे, बन जनता के यार।।
जीवन भर हिन्दू घृणा पूजा शरम बताये।
सत्ता की मजबूरी है, मन्दिर दौड़ जाये।।
विपुल की वाणी कह रही यक्ष प्रश्न है आज।
ये भड़वे रण में भिड़े, करे सही को खाज।।
जग से मायाजाल का कुछ ऐसा सम्बन्ध।
जैसे जीने के लिये हो अपना अनुबन्ध।।
जग का मायाजाल जो छूटे मृत्यु आये।
दोनो पूरक जीवन के विरल इसे समझाये।।
माया ममता मान के बंधन टूटत नाय।
राम नाम के जाप से मोह मुक्त हो जाय।।
नाम सदा लो ईश का उसका कर गुणगान।
सन्त ज्ञानी कहे सुनो बात लाख की मान।
माया ठगनी जान लो जीव सफल बन जाय।
रामनाम की डोर ही नॉका पार लगाय।।
विपुल विपुलता विफल है ज्ञान धरा रह जाय।
राम नाम मनवा धरो जीव ये मुक्ति पाय।।
ठगनी माया ठग गई, ले कर यौवन भाग।
मूरख पीछे भागता, जले समय ज्यूँ आग।।
माया के विस्तार संग, जीवन भ्रम ये पाल।
बालो को काला करे, दूर हुआ क्या काल।।
माया जनम जगत भयो, बिन माया सब सून।
जो समझे माया भली, भोजन पानी जून।।
माया मोह विस्तार का, आदि हुआ न अंत।
माया राम को डस गई, कहे विपुल औ सन्त।।
माया गुरू गोरख भई, लगे मछिनदर बूझ।
गोरख ज्ञानी जाने तब, माया की अस सूझ।।
वह बिरले होते जगत, माया जीत न पाय।
गुरु शिवोम ऐसे रमे, माया भी पछिताय।।
लगी जवानी पूछने, इक दिन मेरा हाल।
देख चलो आगे बढ़ो, वृद्ध अवस्था ढाल।।
जीवन तो ऐसा गया, जैसे हो इक रात।
जागे कब सोये रहे, जब मृत्यु की बात।।
रहे जगाते सब हमें, पर थी गहरी नींद।
सोवत ही जग से चले, कहाँ खुली थी नींद।।
जीत गये तो ठीक है, मत करना अभिमान।
सत्ता ठगनी माया है होवे बन्द दुकान।।
जनता सब है जानती, मत समझो नादान।
मूर्ख समझना भूल है, मूरख की पहिचान।।
दोहा संग सम वेदना, दोहा का है बान।
रूप भक्ति श्रृंगार का, अद्भुत देता ज्ञान।।
कविता संग अपवाद है, अपकाव्य कवि समान।
गीतकार तो बन गये, महाविदूषक खान।।
छंद व्याकरण खा गये, मिट दारू के साथ।
जोर लगाकर चीखते, दो ताली सौगात।।
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