गर हम सारे एक रहेंगे
गर हम सारे एक रहेंगे
देवीदास विपुल उर्फ
विपुल सेन “लखनवी”
नवी मुंबई
गर हम सारे एक रहेंगे।
एक एक अनेक बनेगे।।
शक्ति हम मे आ जायेगी।
काम नए कुछ कर जाएगी।।
चींटी हम को राह दिखाती।
अनुशासन है कहाँ बताती।।
हम मानव कितने अज्ञानी।
बात कभी न किसकी मानी।।
नहीँ समझते इतिहासों को।
करते रहते हैं मनमानी।।
कितनी बार लुटेरे आये।
लूटा हमको घर को बसाये।।
फिर इतिहास बदल डाले।
डाकू को लिख दिए उजाले।।
इतिहास का ह्वास कर दिया।
देश का सत्यानास कर दिया।।
कर षड्यंत्र फिर हमको लूटा।
देश का फिर से भाग्य था टूटा।।
आज पुनः इतिहास समझाता।
अब तो जागो यही बतलाता।।
काश हमारे सब भाई जागें।
अपना स्वार्थ लालच को त्यागे।।
हमसब पुनः एक स्वर गायेँ।
वन्दे मातरम् फिर दोहरायें।।
भारत माता की जय बोलें।
देश प्रेम पर बलि बलि जायें।।
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