गद्दारों भारत छोड़ो
गद्दारों भारत छोड़ो
देवीदास विपुल उर्फ
विपुल सेन “लखनवी”
नवी मुंबई
भारत छोड़ो आज समय है, गद्दारों से कह डालो।।
अब तक जो चुप बैठे थे, मुख खोलकर कह डालो।।
आज समय ऐसा आया है, समय नया अंगड़ाई ले।
कल तक सूखी डाली जो थी, आज पुनः तरुणाई ले।।
अगर कहीं तुम जाग सके न, वक्त तो बीता जायेगा।
देश प्रेम को रोने वालो, कुर्सी प्रेम छा जायेगा।।
युगों युगों तक कष्ट सहे हैं, अब खुदकी पहचान करो।।
तुम हिन्दू यह गर्व से बोलो, अपनी भी पहिचान धरो।।
अब तक डर कर कहते आये, ओढ़ लबादा सब अपने।।
पर तुमने क्या देखा अब तक, एक धर्म के बस सपने।।
खुलेआम मुस्लिम है बोले, धर्म हमारा है ऊपर।
मिलेगी जन्नत उनको केवल, चले राह इस्लामी पथ पर।।
ईसाई भी ऐसे बोले, गॉड एक यीशु ही होलो।
बनो ईसाई धन हम देगें, बदल धर्म ईसाई हो लो॥
पर हिन्दू मूरख अज्ञानी, बात हमेशा अपनी मानी।
तर्क करे बकवास करेगें, पढ़े लिखे अनपढ़ की बानी।।
ये इतिहास बताता हमको, पर उसको तो बदला है।।
आँख लगा सुनहरा चश्मा, चमकाया जो गंदला है।।
आज तुम्हे यह अवसर देते, कर्म तुम्हारे जो अच्छे थे।
हम चाहे कितना भी झगड़े, भारतवासी सब सच्चे थे।।
कभी उठाओ चित्र विश्व का, भारत कितना दिखता है।
विश्व शान्ति जग को देने, सदा ही आगे बढ़ता है।।
पंचशील की बाते सुहानी, कितनी हमनें कर डाली।
किन्तु निर्मम चीन ने देखो, नन्ही चिड़ी मसल डाली।।
बार बार हम मार ही खाते, युगों युगों खाते आये।
पर न समझे अपने भाई, हम पर चिल्लाये गुर्राए।।
इस विश्व से प्यारा भारत, करी मिटाने की तैयारी।।
नही समझते सत्य धरातल, करते गद्दारो से यारी।।
हाथ जोड़कर विनती करता, चेतो समझो समझाओ।।
एक सुनहरा मौका मिला है, हिन्दू हिन्दुस्तान बचाओ।।
कवि विपुल लखनवी। नवी मुम्बई।
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