लतखोर दोहे (हास्य)
लतखोर दोहे (हास्य)
ज्ञानी से ज्ञानी मिले, करे ज्ञान की बात।
गधे से गधा मिले, दे के लातम लात।।
दो मूर्ख जो मिल गए करें बात संसार।
न समझे जो बात जब कर जूतम पैजार।।
नहीं समझ आया मुझे यह जूतों का खेल।
जब तक सर पर टंगा रहे तब तक रहता मेल।।
जूता चप्पल है बहुत पुराना ही हथियार।
भूल गए क्या बात को पिता की जो यार।।
सर पर चप्पल पड़ गई तुरंत चक्षु खुल जाए।
किंतु एक ही मार कर पिता नरमी न आए।।
जितनी पुरानी चप्पल है उतनी सुंदर चोट।
बाप जान से पिट गए खुल गए सारे लगोट।।
गुल्ली डंडा खेलते ज्यादा जोर चिल्लाए।
पिता खड़े हैं हाथ में चप्पल संग गुरराय।।
सही सलामत पर बचे सर के सारे बाल।
पत्नी ने पर नोच कर करे बाल कंगाल।।
चप्पल की महिमा बहुत मिसाइल सा है वार।
फेको नेता या कवि पर इनको मिलता प्यार।।
याद करो बचपन बहुत रबर की चप्पल यार।
बद्दी जब जब टूटी कभी बन जाता हथियार।।
चप्पल पर दोहे बने कितने सुंदर आज।
सर पर मारो जायकर मिट जाएगी खाज।।
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