दीपावली राम नाम की!
सनातनपुत्र देवीदास विपुल खोजी
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एक और दीवाली बीत गई, क्या मन का दीप जला पाये?
है अंतर्मन कालिमा कितनी, क्या मन का तमस मिटा पाये??
बरसों से रावण दहन किया, क्या दहन हुआ रावण मन का?
जतन अनेकों करते फिरते, क्या उतर सका मैला तन का?
रावण से निकृष्ट कर्म करो, बन दुशासन स्त्री वस्त्र हरो।
रावण को मारोगे हर्षित, स्वदर्पण भी कुछ देखा करो॥
है कितनी कोशिश कीं तुमने, जो मन का मैल छूट पाये?
है अंतर्मन कालिमा कितनी, क्या मन का तमस मिटा पाये??
ध्वनि प्रदूषण वायु प्रदूषण, कनफोड़वा शोर तुम करते।
हरने प्रदूषण अपने मन का, है कौन जतन जो तुम करते॥
दीपावली अर्थ को समझो, है अनर्थ लगा कर तुम बैठे।
है निशा ह्रदय से भगा सको, क्या सोंचा क्योंकर हो ऐठें॥
है मन में अपने शांति कितनी, क्या मन का दर्द मिटा पाये॥
है अंतर्मन कालिमा कितनी, क्या मन का तमस मिटा पाये??
अरे सम्भल, अब भी शेष है, श्वासें जो तेरे पास बची।
बस विधना लीला देख धरा, मनमोहनी काया है रची॥
अब राम का नाम विपुल जप ले, असमय समय जो पास बचा।
मन की भटकन अब बंद करें, है समय की बात शव तेरा सजा॥
दास विपुल महिमा बड़नामी, मूरख भी पार उतर जाये।
है अंतर्मन कालिमा कितनी, बस राम नाम ही धो पाये॥
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