गुरुदेव दें नशा
दास विपुल
मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य
मुझको मेरे गुरुदेव ने ऐसी पिलाई है।उतरे नशा न यार का ऐसी आशनाई है॥
बैठे हुये कहीं लेटे हैं कुछ होश भी नहीं।
पत्थर पे नाम उकेरता वह रोशनाई है॥
धारा बहे नशे की ही अब बिन पिये ही नशा।
बहती रही बहती रही है कैसी बहाई है॥
उड़ते रहे बिना परों के उस नूर की तरफ।
थककर भी चूर न हुये और जोश लाई है॥
नहीं दाम कुछ चुकता किया नहीं सोचना पड़ा।
साकी से गागर छीनकर मुझको धमाई है॥
शिवओम का मयखाना है नित्य बोध दे नशा।
जितना भी चाहो पी लो सब, भर भर लुटाई है॥
वह हुस्न जलवानशीनी है कुछ भी पता न था।
खुद उसने अपने हाथ से चिलमन उठाई है॥
उतरे नहीं रब का नशा ऐसा यकीन कर।
प्रभु शिवओम् तीर्थ ने इसे सभी को चखाई है॥
पीकर लुढ़क गया विपुल नित्यबोधानंद नशा।
कहीं होश है बेहोश न सुधबुध गंवाई है॥
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