मत बनाओ प्रभु को पत्थर
मत बनाओ प्रभु को पत्थर
विपुल लखनवी। नवी मुंबई।
मत बनाओ प्रभु को पत्थर स्वयं ही मन देख लो।
रूप सारे उसके जग में हर एक रूप में देख लो॥
बात मानो ज्ञानीजन की सभी कणों में रहता है।
पाषाणों में ढूंढे रब को गुरुशक्ति में देख लो।
कैसी लीला प्रभु रचाई स्वयं बसे इंसान में।
किंतु जग न मिल सके तब स्वयं आत्मा में देख लो॥
आरती किसकी करे है भोग भी तेरा ही लगता।
कस्तूरी मृग में है बसती ब्रह्म स्वयं में देख लो॥
तीर्थ शिवओम की कृपा से अब प्रभु नित्यबोध है।
आत्मा क्या मैं कहां हूं मैं में मैं को ही देख लो॥
दास विपुल दीन हीन है साधन नहीं कुछ कर रहा।
पूछ्ता ज्ञानीजनों से अरे साधना में देख लो॥
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