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Monday, January 27, 2020

सोंचो हर रोज दीवाली ही है

सोंचो हर रोज दीवाली ही है


काव्य: दीपावली क्या

सारे जग के तम को हरने। आती है यह दीवाली।।
प्रभु राम को नमन करने। आती है यह दीवाली।।

युगों युगों से इसे मनाते। पर अंधियारा है बाकी।।
राम ह्रदय में नही है आता। भाव रावण का है बाकी।।
दुर्योधन हो या हो रावण। रण न्याय का है बाकी।।
ईश प्रेम को अर्पण करने। आती है यह दीवाली।।

युग बीते इतिहास हो गए। राम लला उपहास हो गए।।
जितने असुर बचे धरती पर। सत्ता से खासमखास हो गए।।
सत्य न्याय जीवित है जग में। यही यह बतलाती है।।
नही सीखेंगे कुछ भी राम से। मात्र मनाएंगे दीवाली।।

विपुल ने सोंचा हम बदलेंगे। पर न बदला यही हुआ॥
राजनीति के राम हो गए। सीता पुनः अपहरण हुआ।।
महाकाली का काल दिखे अब। जैसे बुद्धि भृष्ट हुआ।।
आज पुनः विचार करो अब। मन  दर्पण है दीवाली।।





"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग :  https://freedhyan.blogspot.com/

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