गुरू
कवि विपुल लखनवी के दोहे
गुरू नहीं है लायक न, न रखे
ब्रह्म का ज्ञान।
गुरू जबरिया बन गये, खोले
धरम दुकान।।
पाप पुण्य की बात कह, शिष्यन
मन भरमाय।
अइसन नरकी गुरू धर, हर
गलियन मिल जाय।।
समझदार वो जनै कहूं, परखे गुरु पहिचान।
असली नकली देखकर, गुरजन
मांगे ज्ञान।।
नकली यह दुनिया दिखै, नकल मिलै
भगवान।
असली तो द्वारे खडा, मूरख
कुछ पहिचान।।
वेद शास्त्र तो रट लिये, माथे
तिलक लगाय।
ज्ञानी गुर के वेश धर, पापी
जग भरमाय।।
जगतगुरू का पद मिला, धन दौलत
सनमान।
धरम दुकानैं चल गयीं, भूल गये सब ज्ञान।।
थोथी बातें ज्ञान की, शिष्यन
को भरमाय।
ऐसो पापी गुरन को, धरा नरक मिल जाय।।
इस मानव की देह को, मूर्ख
कहे भगवान।
वह पापी सम दुष्ट है, न
गीता का ज्ञान।।
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