नित्यबोध स्वामी
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देवीदास विपुल उर्फ
विपुल सेन “लखनवी”
नवी मुंबई
नित्यबोध स्वामी मेरे, तुझको पुकारूं। आओगे घर मेरे द्वारे बुहारूं।।
मेरे गायन में तुम, तुमहो मेरे देवा। मन तो है मैला मेरा, तन को सवारूं।।
तेरी ही शक्ति मुझ में, होती प्रवाहित। पर न समझता मैं कुछ, मूरख गवारूं।।
मैं जड़मति प्रभु, हठी अज्ञानी जग में। लोहा न बनता सोना, कितना निखारूं।।
साधना न मुझसे होती, भजन न जानूं। पापी खलकामी जग में, यही स्वीकारूं।।
तुम तो दया के सागर, भगवन हो मेरे। शरण में पड़ा हूं तेरी, तुझको पुकारूं।।
दास विपुल जग में बड़ा, अज्ञानी मूरख। नयनों के जल से तेरे, चरण पखारूं।।
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