देश टूटने का हम बनेंगे कारण??
एक दर्द विपुल लखनवी की कलम से
कोई हमको क्या मारेगा, हम खुद अपने को मार रहे।
कोई हम पर वार करे क्या, हम खुद अपने पर वार रहे॥
नहीं जरूरत पाक की हमको, आतंकी भारत वो भेजे।
जयचन्द इस देश के काफी, केवल एक डोर ही खेचे॥
गद्दारी हमें मिली विरासत, लहू गद्दारी उबाल रहे।
धरम हमारा देश से ऊपर, दिलो दिमाग तो येही रहे॥
कोई हमको क्या मारेगा, हम खुद अपने को मार रहे॥
देश द्रोही हमको हैं प्यारे, देश के टुकड़े करना है।
जब नेता भी साथ हमारे, पुलिस से क्यों फिर डरना है॥
देखो कल के आतंकी जो, सभी शहीदों में शामिल हैं।
कैसे हम भी चमक उठे अब, कर कोशिश दिनोरात रहे॥
कोई हमको क्या मारेगा, हम खुद अपने को मार रहे॥
पर शायद यह कोढ़ देश के, इनसे घिन ही अब आती है।
कलम विपुल की रूदन करे अब, अपने आंसू गिराती है॥
केवल सत्ता वोट की खातिर, रूप अनेक धर स्वांग करे।
हम ही काफी बरबादी को, अब कौन हमें इनकार करे॥
कोई हमको क्या मारेगा, हम खुद अपने को मार रहे॥
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