मुझको पार लगाओगे
विपुल लखनवी, नवी मुम्बई
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पाप पुण्य प्रभु तुझे समर्पित। मुझको पार लगाओगे॥
चरण में तेरे पड़ा हूं भगवन। कैसे तुम बच पाओगे॥
ठोकर मारो या तुम पीटो। चरण नहीं मैं छोडूंगा॥
मैं चाकर हूं तुम हो मालिक। बारम्बार बुलाओगे॥
युगांतरों से भटका हूं मैं। द्वार तेरा अब पाया हूं॥
तेरे द्वारे का मैं कूकर। कैसे मुझे भगाओगे॥
तेरी जूठन मिल जाती तो। बड़े भाग्य बन जाते हैं॥
मैं भोकूं तो सुनकर प्रभु जी। मुझे डांटने आओगे॥
छवि तुम्हारी देखने खातिर। बार-बार झाकूं भीतर।
तुम भीतर विश्वास है मेरा। कब तुम मुझे हकाओगे॥
दास विपुल सभी करे समर्पित। कर्म विकर्म अकर्म सभी।।
फल यह तेरे भोग भी तेरा। भूख लगे तो खाओगे।।
इक विनती पर सुन लो प्रभु जी। ह्रदय निवास न छोड़ोगे।।
जिस दिन तुम छोड़ोगे घर को। दास विपुल नहीं पाओगे।।
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