होना है हो कुर्बां वतन आन के लिये
विपुल लखनवी मुम्बई
न हिंदू न इसाई मुसलमान के लिये।
होना है हो कुर्बां वतन आन के लिये॥
मरना अगर तुम चाहो सीमा पर मरो।
हों शहीद देश पर ये जज्बा ही धरो॥
न गीता न बाईबिल न कुरान के लिये।
होना है हो कुर्बां वतन आन के लिये॥
नमक की हलाली हिन्दुस्तान से करो।
क्या मुंह दिखाओगे कुछ अल्लाह से डरो॥
न मंदिर नहीं चर्च मस्जिद नाम के लिये।
होना है हो कुर्बां वतन आन के लिये॥
सारे इंसा उसके बंदे लहू सब एक।
वह तो केवल एक ही नाम हैं अनेक।।
न कब्रगाह मुर्दा कब्रिस्तान के लिये।
होना है हो कुर्बां वतन आन के लिये॥
यह सारी दुनिया उसकी रहमत से बनी।
फिर दंगा फसाद क्यों संगीनें क्यों तनी।।
यह बारूद न है उसके बाम के लिये।
होना है हो कुर्बां वतन आन के लिये॥
तेरा मेरा लहू एक नाम हैं अलग।
सांस सबकी एक पर जिस्म हैं अलग॥
जीना तुमको जिओ नेक काम के लिये।
होना है हो कुर्बां वतन आन के लिये॥
देश का सदा परचम ऊंचा ही रहे।
सारे जग का शांति गुरू बन कर रहे॥
न फैला अशांति डर इंसान के लिये।
होना है हो कुर्बां वतन आन के लिये॥
भारत का मान विपुल बढ़ता ही रहे।
भारत का डंका जग में बजता ही रहे॥
भारत मां के मुकुट भाल शान के लिये।
होना है हो कुर्बां वतन आन के लिये॥
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