नमोऽस्तु परम ब्रह्म
दास विपुल
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धरे कभी गुरु रूप जो, कभी बना अव्यक्त॥
करूं प्रार्थना शक्तिमान, स्वयं को निर्बल जान।
सकल विश्व व्यापत रहे, जगदम्बिका परनाम॥
गुरू देव की स्तुति बिना, पूर्ण न कोई काम।
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु, गुरू गुणों की खान॥
सर्व देव विनती करूं, करूं विनय कर जोर।
दास विपुल चरणी पढ़ा, सुन लो विनती मोर।।
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