देश नहीं प्याज चाहिए
देश नहीं प्याज चाहिए
विपुल लखनवी नवी मुंबई।
हमको अपना देश नहीं प्याज चाहिए।
मोफत में घूमे बस आगाज चाहिए॥
गर चाहे तुम देश के टुकड़े ही करो।
गद्दारों को पालो पोसो उनको वरो॥
हमको बिना कीमत बस अनाज चाहिए।
हमको अपना देश नहीं प्याज चाहिए॥
सड़कों पर सुअर लोटें हमको कुछ नहीं।
मुफत में बिजली पानी हमको कुछ नहीं॥
सड़कों पर चलना दूभर हमें कुछ नहीं।
बदबू मारे सांस दूभर हमें कुछ नहीं॥
हमको फिरे पानी देश बर्बाद चाहिए।
हमको अपना देश नहीं प्याज चाहिए।
धरम और करम हमारा कहीं कुछ नहीं।
लाज और शरम अपना कभी कुछ नहीं॥
सौंप देंगे बेटी अपनी क्या गुरेज है।
आज का हो फायदा इरादा नेक है॥
मंदिर की घंटी नहीं आवाज चाहिए।
हमको अपना देश नहीं प्याज चाहिए॥
कविता लखनवी विपुल कितना ही रोके।
देश प्रेम भक्ति भाव कितना ही टोके॥
हम तो हैं अंधे स्वार्थ के दिखे कुछ नहीं।
दारू की बोतल संग दिखता कुछ नहीं॥
हमको बस मोफत का आगाज चाहिए।
हमको अपना देश नहीं प्याज चाहिए॥
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