मशाल देश की
विपुल लखनवी
देश की मशाल आज, बढ़ के थाम लो।सुलग रहें हैं प्रश्न जो, बढ़ के थाम लो॥
देश से बड़ा कोई इस जगत में नहीं।
देश की लिये जीना है जान ही सही॥
देश के विरोधी जो हैं उनकी जान लो।
सुलग रहें हैं जो सवाल बढ़ के थाम लो॥
गर बचेगा देश यह तब ही बचे धरम।
जातिगत भेद भूलें एक ही होवे हम।।
हिन्द से है हिन्दू वतन यह भी जान लो।
सुलग रहें हैं जो सवाल बढ़ के थाम लो।।
सत्ता के व्यापार में ही देश लूट रहा।
नोटों से वोट ले मुफत देश बिक रहा॥
अब जाग जागो भाई मुठ्ठियां तान लो।
सुलग रहें हैं जो सवाल बढ़ के थाम लो॥
पहले मुगलों ने हमें कितना लूटा है।
गोरों की जुलमियत से भाग्य फूटा है॥
अब भी वक्त साथ तेरे यह तो मान लो।
सुलग रहें हैं जो सवाल बढ़ के थाम लो॥
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