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Tuesday, October 13, 2020
अजीब किस्म की गरीब दुनिया
अजीब किस्म की गरीब दुनिया
विपुल लखनवी
फेंको फेंको कुछ भी फेंको। सब चलता है इस दुनिया में॥
गली गली ज्ञानी बैठें हैं। पर न ज्ञानी मिले दुनिया में॥
सब खोलें हैं अपनी दुकान। राम नाम महिमा नहीं जान॥
बन चेला हूं गुरु मैं तेरा। मुझको अपना गुरू तू मान॥
विपुल खड़ा अचरज में देखे। उलटी वाणी सबकी देखे॥
दूजे को उपदेश बताते। खुद नहीं रत्ती भर हैं सीखे॥
अजीब खेल है यह संसारी। लालच से जगती है हारी॥
सभी दिखें मन जो है निर्धन। कैसे हडपे दूजे का धन॥
एक लम्बा पद : साधो! ले लो राम का साथ
एक लम्बा पद : साधो! ले लो राम का साथ।
विपुल लखनवी
मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य
साधो! ले लो राम का साथ।
जिसके मन में राम नहीं वह, जग में रहता अनाथ।
सियाराम ही शक्ति स्वरूपा, शिव भी जपे दिन रात॥
राम नाम को जपते जपते, तू हो अपने साथ।
राम नाम तेरी श्वास बसे, कर मुझपर विशवास॥
कितने पापी तार दिये है, राम नाम जिन्हें पास।
रोम रोम में वो बसता है, पकड़े बढाकर हाथ॥
रासी रगड़ रगड़ से घिसकर, पत्थर भी घिसै जात।
मन को रगड़े राम नाम से, राम नाम सौगात॥
बाल्मीकी ने कथा सुनाई, तुलसी लिखी गाथ।
केवट शबरी को भी तारा, पूछे न कोई जात॥
अपने भीतर उसे पकड़ ले, कभी बाहर न आये।
दास विपुल उसे पकड़े छोड़े, जगत परिपंच दे मात॥
नित्यबोधानंद गुरूवर, कृपा शिवोम् मिल जाये।
दास विपुल का जीवन तर दे, विनती करूं दिन रात॥
Monday, October 12, 2020
एक पद : राम नाम सुखदाई साधु
एक पद : राम नाम सुखदाई साधु
विपुल लखनवी
मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य
राम नाम सुखदाई रे साधु।
रामनाम इक सत्य भया जग, शेष जगत दुखदाई।
कहत सदा से सुरमुनि जग में, राम नाम अधिकाई॥
साधु रामदास अस धारा, बांकुर शिवा बनाई।
राम नाम को जपते तुलसी, रामचरित जग गाई।।
राम नाम ही जपत कबीरा, महायोगी बन जाई।
राम नाम की महिमा गाकर, गुरु नानक गुरुआई।।
कितने पापी तर के जाएं, राम नाम को गाकर।
विठ्ठल विठ्ठल तुका जपे जब, हरि के दरशन पाई।।
राम कहो चाहे कृष्ण कहो, राम नाम जप जाई।
नाम किसी भी देव का ले लो, राम नाम भरपाई।।
देवीदास विपुल ही पापी, राम विमुख जगजाई।
हैं हनुमत सदा ही सहायक, महिमा राम जताई।।
चेन से चैन नहीं
चेन से चैन नहीं
विपुल लखनवी
चेंन चैन नहीं दे सके, पहनो यह दिन रात।
राम नाम के बैन से, शान्ति मिलती आप।।
चेंन एक जंजीर है, स्वर्ण रजत या लौह।
यह बंधन है ग्रीव में, मुक्त नहीं है वोह।।
प्रभु नाम ही काटता, जगती के जंजाल।
चैन तभी पा पायेगा, मूरख मन में पाल।।
काल कोरोना मिल गया, कर इसका सदुपयोग।
दास विपुल की मान लें, कर ले तू परयोग।
विपुल लखनवी का उलट पद
विपुल लखनवी का उलट पद
मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य
साधो हरिनाम दुखदाई।
हरिनाम सुन नेत्र सजल भये, हिरदय टीस उठाई।।
हरिनाम की बाजे बांसुरी , जग में मैं बौराई।
मैं बिरहन एक हरिनाम की, उर हरिनाम लगाई।
नेह नाते टूटे जगत के, जग में होत हंसाई।।
जित देखू तित हरि ही दीखे, चहुंदिश श्याम दिखाई।
मैं बावरिया रहूं सुलगती, श्वांस कबहुं रुक जाई।
हर धडकन में हरि डोलत है, हरित हरी हरियाई ।
वह निष्ठुर निरमोही ऐसा, नहीं करें कुड़माई॥
अब पछताऊं हिरदय देकर, जीवन उत दे आई।
मत करियो तुम प्रेम हरि संग, वह निष्ठुर हरजाई॥
यह कैसी है लीला हरि की, प्रेम करो तो भागे।
दास विपुल हरिनाम लुटा है, हरिनाम मिटी जाई॥
मौन में वो कौन
मौन में वो कौन
विपुल लखनवी
मौन में वो कौन है जो गूंजता उर में मेरे।
इस हृदय में कौन रहता पास रहता जो मेरे॥
इक कहानी बन चली है मौन से चुपचाप उठकर।
है नहीं नायक कहीं भी प्रश्न यही मुझको घेरे॥
वाणी मेरी मौन है और शब्दों में परिहास है।
मूक रहकर कौन गाता गीत जो ठहरे सुनहरे॥
नहीं उसे मैं जान पाऊं जीवन मांझी कौन है।
क्या सफल होगा विपुल हैं कौन से चेहरे मेरे॥
Wednesday, March 4, 2020
गायन्ती देवा गायत्री माता
गायन्ती देवा गायत्री माता
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देवीदास विपुल
गायन्ती देवा गायत्री माता। जग की विधाता गायत्री माता॥
करतार जग की गायत्री माता। भरतार जग की गायत्री माता॥
वेदों का सार तुम्ही हो माता। सृष्टि आधार तुम ही हो माता॥
आदिशक्ति तुझी में है समाई। भक्तजन की भक्ति गायत्री माता॥
जगत का ज्ञान तुम से ही प्रकटे। ज्ञान विज्ञान मां तुम्ही से उपजे॥
महिमा तेरी कोई न जाने। पर सबको जाने गायत्री माता॥
पंचमुखों का मां रूप बनाया। असुरों को पाताल पैठाया॥
भक्तों को सदा सुख देने वाली। सब इच्छित देती गायत्री माता॥
दास तेरा विपुल महिमा गाये। तुझको कभी न पलभर बिसराए॥
भक्तों को शक्ति देने वाली तू। ज्ञानी का ज्ञान गायत्री माता॥
तेरे नाम से भय भी कांपे। काल डरे डरकर मुख को ढांपे॥
तू ही अमरता का वर देती। अमृत घट दे गायत्री माता॥
भोला शंकर तेरी स्तुति गाएं। ब्रह्मा विष्णु तेरा पार न पाएं॥
तू ही ब्रह्मा को ब्रह्माण बनाती। जगत चलाती गायत्री माता॥
यज्ञ का भाग तुझ ही से उपजे। स्वाहा सुधा तुझसे ही उपजे॥
तू ही सदा जग पालन करे मां। तू ही जगदंबे गायत्री माता॥
सारा ज्ञान ध्यान तेरा जग में। सारे तीरथ धाम हैं तुझमें॥
तू ही वेदों को जनम है देती। वेद का ज्ञान है गायत्री माता॥
प्रभु शिव ओम् ने गाया तुमको। नित्य बोधा नन्द पाया तुझको॥
साथ कभी न छूटे तेरा मां। सदा दे सहारा गायत्री माता॥
जब तक तन मेरे प्राण रहे मां। प्रतिपल तेरा ही ध्यान रहे मां॥
मुझे मुक्ति का मारग दिखाओ। कैसे हो मुक्ति गायत्री माता॥
हम शठ अज्ञानी बालक हैं तेरे। महा आलसी कर पाप घनेरे॥
पर तेरी शरणी आन पड़े मां। शरण में ले लो गायत्री माता॥
गीता में प्रभु कृष्ण ने गाया। मंत्र गायत्री सर्वश्रेष्ठ बताया॥
भक्त को ज्ञान सदा देती रहना। ज्ञान दायक है गायत्री माता॥
जो जन आरती गायत्री गावे। प्रेम सहित माता को ही ध्यावे॥
सभी मनोरथ होते हैं पूरित। फल दायक हैं गायत्री माता॥
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Monday, March 2, 2020
आत्म अवलोकन
आत्म अवलोकन
विपुल लखनवी
सुमनों के बीच आकार आज मैं इठला गया हूं।
सूंघकर मादक सुगन्ध अकिंचन ही इतरा गया हूं॥
मैं समझने यही लगा था मैं ही खुद हूं बागवां।
तितली की चाह में दौड़ा न मिली बौरा गया हूं॥
थक गया मैं कुछ चलकर दोपहर की तेज धूप में।
छांव की कीमत कुछ समझी जब उसको पा गया हूं॥
रात्रि नीरव चल पड़ा था जुगनुओं की भीड़ संग।
इक कतरा रोशनी को पाकर ही घबरा गया हूं॥
नाते रिश्ते जो मिले थे दुनियादारी दे गए।
पर जगत के साथ चलकर उनको भी निभा गया हूं॥
जख्म गहरे जो मिले थे टीस ऐसी दे गए कुछ।
गलत सही कुछ भी किया इलाज खुद ही पा गया हूं॥
दुनिया को पढ़ता रहा पर खुद को ही न पढ़ सका।
खुद रहा अनपढ़ सदा दूजे को समझा गया हूं॥
है विपुल सब कुछ निराला गणित का नहीं सूत्र है।
जिन्दगी की दौड़ में सबसे पीछे आ गया हूं॥
हिंदुओं को यक्ष सीख: किस तरह से शोक मनाएं?
हिंदुओं को यक्ष सीख: किस तरह से शोक मनाएं?
विपुल लखनवी
आओ मिलकर अभ्यास करें, हम किस तरह से शोक मनाएं।आओ मिलकर अभ्यास करें, हम किस तरह से रोएं गाएं॥
कभी कहीं मार काट मचे, हम किस तरह से जान बचाएं।
घर में घुस जब हमला होय, हम किस तरह से बच रह पाएं॥
बचपन से है ये ही पढाया , सत्य अहिंसा का मार्ग सबल।
नहीं सताओ उसे कभी भी, जो होता है तुम से निर्बल॥
किन्तु अब तो यही समझना, सबल हमें बनना ही होगा।
बहुत देर हुई जगते जगते, समय रहते तो जग जाएं॥
आओ मिलकर अभ्यास करें, हम किस तरह से शोक मनाएं॥
हर गली सड़क गद्दार हैं बैठे, संभल कर चलना होगा।
इतिहास से नहीं सीखे कुछ, फिर से उसे गढ़ना होगा॥
जब तक खुदी पर न हो हमला, भाषण देना आदत अपनी।
भाषणबाजी बंद करो अब, सत्य स्वीकार कैसे कर पाएं॥
आओ मिलकर अभ्यास करें, हम किस तरह से शोक मनाएं॥
मरे पड़ोसी हमको क्या है, ओढ़ के सोना आदत है।
हम पालेंगे भाई चारा, चारा बन जाएं आदत है॥
पाकिस्तान में कितने खुश हम, जनसंख्या हिन्दू भरपूर है।
समय लगेगा पूरा मिटने में, पूरे हम कैसे मिट जाएं॥
आओ मिलकर अभ्यास करें, हम किस तरह से शोक मनाएं॥
बंगलादेश में देखो कैसे, हिन्दू दिवाली मनाते हैं।
उसी राह भारत को चलाना, बार-बार दोहराते हैं॥
जो सोते से जगाने आते, उनको हम कुत्ता समझे।
जो हम को समझाने आते, उनको अपने घर से भगाएं॥
आओ मिलकर अभ्यास करें, हम किस तरह से शोक मनाएं॥
लड़ने का अभ्यास आपस में, दलित हिन्दू बनकर ले लें।
जब तक पूरे नष्ट न होगें, शपथ मरने की हम ले लें॥
कितना सुंदर दृश्य दिखेगा, जब देश सीरिया हो जाए।
लाल नदी चारों ओर बहेगी, तब ही खुश हो पाएं॥
आओ मिलकर अभ्यास करें, हम किस तरह से शोक मनाएं॥
तब ही तरक्की देश करेगा, परचम अपना लहराएगा।
प्यारा तिरंगा अतीत बनेगा, भगवा नजर नहीं आएगा॥
करें प्रयास दलित हिन्दू यह, हम कभी एक न हो पाएं।
तब ही तरक्की देश करेगा, परचम अपना लहराएगा॥
प्यारा तिरंगा अतीत बनेगा, भगवा नजर नहीं आएगा॥
करें प्रयास दलित हिन्दू यह, हम कभी एक न हो पाएं।
तब तक विपुल मुफ्त की बिजली, पानी संग मौज मनाएं॥
आओ मिलकर अभ्यास करें, हम किस तरह से शोक मनाएं।
तब तक विपुल मुफ्त की बिजली, पानी संग मौज मनाएं॥
आओ मिलकर अभ्यास करें, हम किस तरह से शोक मनाएं॥
Sunday, March 1, 2020
खून बहाने से अच्छा है दूध बहाया जाए
पोस्ट पर मेरा जवाब।
खून बहाने से अच्छा है दूध बहाया जाए
विपुल लखनवी। नवी मुंबई।
खून बहाने से अच्छा है दूध बहाया जाए।
बू फैलाने से अच्छा है फूल चढ़ाया जाए।।
सड़क पर चिल्लाने से अच्छा मंदिर जाया जाए।
काले टीके से अच्छा इक तिलक लगाया जाए।।
घर को जलाने से अच्छा इक दीप जलाया जाए।
पशुओं को खाने से अच्छा मीठा खाया जाए।।
घृणा फैलाने से अच्छा भजन ही गाया जाए।
गुजरों पर रोने से अच्छा प्रभु को रोया जाए।।
कितनी सुंदर बातें हैं मूरख न देखा करते।
माथापच्ची से अच्छा शिव शंकर गाया जाए।।
शिवाजी अमर हैं।
शिवाजी अमर हैं।
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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शिवाजी अमर हैं।
दिलों में बसर हैं।। दुष्टों की कबर हैं।
हिंदुत्व की खबर हैं।।
काम में जबर हैं।
शूर में गबर हैं।।
धूर्त की घबर हैं।
ईमान में सबर हैं।।
युद्ध में पुरोधा हैं।
विपुल का घरौदा हैं।।
भगवा के साथ हैं।
गरीबों के हाथ हैं।।
न कोई इतिहास हैं।
कलम निवास हैं।।
अनेकों नमन हैं।
देश का चमन हैं॥
हे वीर शिवा जी।
कब आगमन है॥
तुमको है आना।
जगा कर जाना।।
तुम्हें हम पुकारें।
खडें तेरे द्वारें॥
देश को बचाना।
हे वीर नायक।
जल्दी ही आना॥
जय जय शिवा जी महाराज।
🚩🚩🚩🚩🚩
Thursday, February 27, 2020
काव्यात्मक सिद्ध कुंजिकास्तोत्र (श्री दुर्गा सप्तशती)
काव्यात्मक सिद्ध कुंजिकास्तोत्र (श्री दुर्गा सप्तशती)
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
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कैसे पाठ देवी सफल हो। वह जप जग को बतलाऊंगा।1।
मात्र कुंजिका पाठ कारण से। मिलता मात दुर्गा का फल है।
कवच अर्गला कील रहस्य सब। आवश्यक सूक्त न्यास गाऊंगा।2।
भेद यह अत्यंत गुप्त विरल है। देवों को भी नहीं सरल है॥
उमा इसे गुप्त सदा रखना। ज्यों योनि हो छिपा के ढंकना।3।
कुंजिका उत्तम पाठ निराला। मारण मोहन स्तम्भन टाला॥
वशीकरण आभिचारिक उच्चाटक। काटे तंत्र मंत्र सब घातक॥
सभी उद्देश्य ये पूरित करता। सर्व बलशाली स्तोत्र है भरता। 4।
॥अथ काव्यात्मक मंत्र॥
महासरस्वती चित्स्वरूपिणी, हे महालक्ष्मी सद्ररूपिणी।
आनन्दरूपा हे महाकाली, पतित जनै कष्ट हरनेवाली।1।
विद्या ब्रह्म की महासरस्वती, ध्यान सदा करती प्रकृति।
महाकाली महालक्ष्मी देवी, सर्वरूपिणी चण्डी देवी।2।
बारम्बार नमस्कार तुम्हे है, सकल सृष्टि का भार तुम्हें है।
रज्जु की दृढ़ ग्रन्थि को खोलो, अविद्यारूप कर मुक्त मुख खोलो।3।
ग्लों गणपति दुख नाश करो, असुर-संहारक शिव ज्ञान वरो।
इच्छापूर्ति शक्तिदाताकाली, कर्ता कृष्ण काम रखवाली।4।
देव क्रियाशील हो श्वांस रहने तक, प्रसन्न मुझ पर आस रहने तक॥
पुन: नम: महासरस्वती दयालु, महालक्ष्मी महाकाली कृपालु।5।
चण्डी स्वरूपिणी अनंत प्रणाम, माता बनें तीनों आयाम।
पृथ्वी से आकाश जहां तक, जन्म से पहले बाद वहां तक। 6।
मूलाधार सहस्त्र ब्रह्म तक, चक्र हो जागृत सिद्धि वरने तक।
सिंह समान चक्र दहाड़े, वीरभद्र सम बाधा पछाड़े।7।
अनाहत हो सिद्धि के पुष्पदल, हो प्रज्जवलित सिद्धि दे सब जल।
तीव्र ज्वल तीव्रतम हो प्रकाशित, अनन्त शक्ति संग हो विस्फोटित
मां मुझको सर्व सिद्धि दे दो, साथ भुक्ति और मुक्ति दे दो।8।
॥ इति मंत्र ॥
रुद्रस्वरूपणी तुम्हे नमस्ते, महादैत्य मधुहंता नमस्ते॥
कैटभ वध शुम्भ निशुम्भ हंता, महिषासुरमर्दिनी को नमस्ते।1।
महादेवी जप कर दो जाग्रत, सिद्ध करो हूं तेरे शरणागत॥
ऐंकार रूप सृष्टिस्वरूपणी, ह्रींकार सृष्टि पालन रूपणी।2।
क्लीं निखिल ब्रह्मांड बीज रूपा, विश्वव्यापि सर्वेश्वरी नमस्ते।
चामुण्डा चण्डमुण्डविनाशिनी, यैकार वरदायी को नमस्ते।3।
विच्चै रूप निज अभय प्रदाता, महामंत्र नर्वाण को नमस्ते।4।
धां धीं धूं रूप शिव पटरानी, वां वीं वूं वागेधीश्वरी नमस्ते।
क्रां क्रीं क्रूं रूप कालिका देवी, शां शीं शूं कल्याणी को नमस्ते।5।
हुं हुं हुंकार रूप देवी, जं जं जं जम्भनादिनी नमस्ते।
हे कल्याणकारिणी भैरवी, महाभवानी बारम्बार नमस्ते।6।
अं कं चं टं तं पं यं शं, वीं दूं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं।
धिजाग्रं इन बीजों को तोड़ो, दीप्त कर स्वाहा सिद्धि को मोड़ो। 7।
पां पीं पूं तुम पार्वती पूर्णा, खां खीं खूं खेचरी को नमस्ते।
सां सीं सूं सप्तशती देवी, मंत्र सिद्ध हो सब देव नमस्ते।
हे दुर्गा मां कृपा कर देना, पाठ सिद्ध कर हमें वर देना।8 ।
कुंजिका पाठ मंत्र सभी जगाता। नास्तिक, भक्तिहीन नहीं देना॥
हे पार्वती सदा गुप्त रखना। किसी अयोग्य मूरख मत देना॥
इस स्तोत्र बिन सप्तशती पढ़ना। उसे कभी कोई सिद्धि मिले न॥
इसके साथ सब पाठ सार्थक। बिन इस जस वनविलाप निरर्थक॥
दास विपुल मां कृपा कर देना। महिमा बखानूं शब्द वो देना॥
हे जगदम्बे जग मात भवानी। जग में न कोई महिमा जानी॥
सब भक्तों पर दया कर देना। मनवांछित फल सबको देना॥
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Friday, February 21, 2020
देश नहीं प्याज चाहिए
देश नहीं प्याज चाहिए
विपुल लखनवी नवी मुंबई।
हमको अपना देश नहीं प्याज चाहिए।
मोफत में घूमे बस आगाज चाहिए॥
गर चाहे तुम देश के टुकड़े ही करो।
गद्दारों को पालो पोसो उनको वरो॥
हमको बिना कीमत बस अनाज चाहिए।
हमको अपना देश नहीं प्याज चाहिए॥
सड़कों पर सुअर लोटें हमको कुछ नहीं।
मुफत में बिजली पानी हमको कुछ नहीं॥
सड़कों पर चलना दूभर हमें कुछ नहीं।
बदबू मारे सांस दूभर हमें कुछ नहीं॥
हमको फिरे पानी देश बर्बाद चाहिए।
हमको अपना देश नहीं प्याज चाहिए।
धरम और करम हमारा कहीं कुछ नहीं।
लाज और शरम अपना कभी कुछ नहीं॥
सौंप देंगे बेटी अपनी क्या गुरेज है।
आज का हो फायदा इरादा नेक है॥
मंदिर की घंटी नहीं आवाज चाहिए।
हमको अपना देश नहीं प्याज चाहिए॥
कविता लखनवी विपुल कितना ही रोके।
देश प्रेम भक्ति भाव कितना ही टोके॥
हम तो हैं अंधे स्वार्थ के दिखे कुछ नहीं।
दारू की बोतल संग दिखता कुछ नहीं॥
हमको बस मोफत का आगाज चाहिए।
हमको अपना देश नहीं प्याज चाहिए॥
Thursday, February 20, 2020
तुलसीदास कृत रुद्राष्टकम् का काव्यात्मक रूप
तुलसीदास कृत रुद्राष्टकम् का काव्यात्मक रूप
सनातनपुत्र देवीदास विपुल “खोजी”
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परम संत प्रभु तुलसीदास से क्षमा याचना करते हुये उन महाकवि की इस स्तुति को काव्यात्मक रूप देने का दुस्साहस कर रहा हूं। प्रभु शिवशंकर मेरी सहायता अवश्य करेंगे। इसी विश्वास के साथ आज महाशिवरात्रि के पर्व पर काव्य संरचना प्रस्तुत करता हूं। कुछ शब्द गेयता हेतु जोड़े हैं।
हे मोक्षरूप हे विभो व्याप्त, हे जगतपिता तुम्हे नमस्कार।
हे सकल ब्रह्म स्वामी जग के, हे वेद रूप तुम्हे नमस्कार॥
गुण दोष परे हे भेद रहित, आच्छादित वस्त्र नभ नमस्कार।
स्वरूप चेतन इच्छा विहीन, निरीह न विकल्प तुम्हे नमस्कार॥
जिनका कोई आकार नहीं, ॐकार मूल तुम्हे नमस्कार।
वाणी विज्ञान इन्द्री से परे, कैलाशपति तुम्हे नमस्कार॥
जो महाकाल हैं बने काल , विकराल प्रभु तुम्हे नमस्कार।
संसार परे जो महा ईश्वर, हैं परम कृपालु तुम्हे नमस्कार॥
गिरिराज हिमालय सम समान, गम्भीर धीर तुम्हें नमस्कार।
कटि कमान कामदेव लजा, ज्योति स्वरूप तुम्हें नमस्कार॥
जिनके सिर गंग विहंग सदा, ग्रीवा पर शोभित सर्प सदा।
जिनके ललाट चंद्रमा साजे, मंगलकारी तुम्हें नमस्कार॥
कुण्डल शोभित जो कर्ण हिले, सुन्दर भ्रुकुटी तुम्हें नमस्कार।
नील कंठ विशाल नेत्र प्रभु, हैं प्रसन्न मन तुम्हें नमस्कार॥
जो परम दयालु जग के नाथ, कल्याणकारी तुम्हें नमस्कार।
हूं शिव शंकर की शरण सदा, भक्त वत्सल तुम्हें नमस्कार॥
जो रौद्र रूप हैं श्रेष्ठ सदा, अजन्म अखंड तुम्हें नमस्कार।
करोड़ों सूर्य सम दें प्रकाश, त्रैशूल हरन तुम्हें नमस्कार॥
निर्मूल मूल संग है त्रिशूल, पार्वती पति तुम्हें नमस्कार।
तेजस्वी प्रेम से प्राप्त सदा, परमेश्वर शंकर को नमस्कार॥
जो कला परे कल्याण रूप, कलपान्त कारक तुम्हें नमस्कार।
जो दे आन्नद सज्जन को सदा, सच्चिदानन्द तुम्हें नमस्कार॥
हे त्रिपुर रक्षक मोह के भक्षक, मन मन्थक प्रभु प्रसन्न होवें।
जिन भस्म किया प्रभु कामदेव, कर कोटि कोटि तुम्हें नमस्कार॥
जब तक पार्वती पति चरण न भज, कभी शांति नहीं मिल सकती है।
तब तक न हो जीव ताप नाश, शांति प्रदाता तुम्हें नमस्कार॥
सब ह्रदय निवासी कैलाशवासी, मुझ मूरख पर अब प्रसन्न हो।
कर जोर भयातुर भक्त सुनो, प्रभु बारम्बार तुम्हें नमस्कार॥
नहीं योग पता हे योग पति, न पूजा विधि अर्चन है पता।
है शम्भू सदा तुमको भजता, करता रहता तुम्हें नमस्कार॥
इस जरा देह भय से व्याकुल, हूं शरण विपुल तेरी प्रभुवर।
अब मुक्त करो दुख: जनम मरण, हे शिवशम्भो तुम्हें नमस्कार॥
भगवान रूद्र की स्तुति कर, ब्राम्हण तुलसी ने है गाया।
जो जन रूद्राष्टक पाठ करे, हो प्रसन्न शम्भू ये ही गाया॥
है दास विपुल शिवरात्रि दिवस, शिव शंकर प्रभु का याचक है।
भक्तन सब सुख निरवाण विपुल, हर शब्द संग तुम्हें नमस्कार॥
इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं व देवीदास विपुल काव्य रूपांतरण सम्पूर्णम् ।
रावण कृत शिव तांडव स्त्रोत का हिंदी काव्य रूपान्तर
गायत्री माता : जाने के लिये लिंक को दबायें
Monday, February 17, 2020
मां काली गुरू लीला
मां काली गुरू लीला
देवीदास विपुल
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जय मां काली तेरी लीला, सदैव है करती खेल यहां।
तेरी माया सब कर सकती, बेमेलों के भी मेल यहां।।
मैं तो अदना सा प्राणी हूं, है क्या बिसात मेरी माता।
राजा रंक बनाती रहती, करती रहती तू खेल यहां।।
नहीं समझ पाया इस जगती, कैसे करूं व्यवहार दुनियां।
मैं अज्ञानी विपुल नाम संग, नहीं मिले कुछ भी मेल यहां।।
सदा मुक्त बनो मुक्त विचरो, है मुक्त का कोई बंधन न।
तुम मुक्त आत्मा धरा पर हो, तेरा कुछ न जग निबंधन यहां।।
तुम मुक्त जगह से आए थे, पर जग में बंधन कर डाले।
जब जाओगे इस जगती से, तब हो कौन सा बंधन यहां।।
तुम मुक्त रहो कर्तव्य करो, पर बंधन से न बंध जाना।
यह श्वास तेरी मुक्ति बंधन, कर लो इसका अभिनंदन यहां।।
है विपुल मुक्त इन बंधन से, नहीं कुछ लेना न कुछ बाकी।
गुरू के बंधन बंध जाओ, होगा न कोई बंधन जहां।।
जाने के लिये लिंक को दबायें : मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य
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होना है हो कुर्बां वतन आन के लिये
होना है हो कुर्बां वतन आन के लिये
विपुल लखनवी मुम्बई
न हिंदू न इसाई मुसलमान के लिये।
होना है हो कुर्बां वतन आन के लिये॥
मरना अगर तुम चाहो सीमा पर मरो।
हों शहीद देश पर ये जज्बा ही धरो॥
न गीता न बाईबिल न कुरान के लिये।
होना है हो कुर्बां वतन आन के लिये॥
नमक की हलाली हिन्दुस्तान से करो।
क्या मुंह दिखाओगे कुछ अल्लाह से डरो॥
न मंदिर नहीं चर्च मस्जिद नाम के लिये।
होना है हो कुर्बां वतन आन के लिये॥
सारे इंसा उसके बंदे लहू सब एक।
वह तो केवल एक ही नाम हैं अनेक।।
न कब्रगाह मुर्दा कब्रिस्तान के लिये।
होना है हो कुर्बां वतन आन के लिये॥
यह सारी दुनिया उसकी रहमत से बनी।
फिर दंगा फसाद क्यों संगीनें क्यों तनी।।
यह बारूद न है उसके बाम के लिये।
होना है हो कुर्बां वतन आन के लिये॥
तेरा मेरा लहू एक नाम हैं अलग।
सांस सबकी एक पर जिस्म हैं अलग॥
जीना तुमको जिओ नेक काम के लिये।
होना है हो कुर्बां वतन आन के लिये॥
देश का सदा परचम ऊंचा ही रहे।
सारे जग का शांति गुरू बन कर रहे॥
न फैला अशांति डर इंसान के लिये।
होना है हो कुर्बां वतन आन के लिये॥
भारत का मान विपुल बढ़ता ही रहे।
भारत का डंका जग में बजता ही रहे॥
भारत मां के मुकुट भाल शान के लिये।
होना है हो कुर्बां वतन आन के लिये॥
साथ क्या ले जाऊंगा
साथ क्या ले जाऊंगा
देवीदास विपुल
जिन्दगी का क्या भरोसा साथ क्या ले जाऊंगा।
जिन्दगी जब न है मेरी क्या जगत से पाऊंगा॥
माटी का चोला पहन माटी में मिल जाऊंगा।
माटी से जग यह बना माटी ही बन जाऊंगा॥
माटी जीवन जी रहा माटी तो ब्रह्म गान है।
माटी की सब दे सकेगी माटी से सब काम है॥
जो बसी सांसो की माला पहला मोती जान लूं।
न समझ पाया क्या माला फेर कैसे पाऊंगा॥
देखता सब चुक गया जो भी समय मेरे पास था।
समझ न आया है कुछ भी कौन मेरी आस था॥
क्या करूं कुछ सूझे न वाणी मेरी अब साथ न।
हाथ विपुल कर के खाली जगत से मैं जाऊंगा॥
तीर्थ गुरूवर की दया जो वो मेरे है काम की।
माटी सा जीवन बिताया स्वप्न मिट्टी नाम की॥
कर दया ईश गुरूवर योग संग में ध्यान दो।
नौका दे दो ज्ञान की भव सागर तर जाऊंगा॥
राष्ट्र पूजन
राष्ट्र पूजन
विपुल लखनवी नवी मुम्बई
mob 09969680093
हम करें राष्ट्र की पूजा। हम करें राष्ट्र की पूजा॥
न कोई धर्म हो दूजा। न कोई मर्म हो दूजा॥
न धर्म का कोई बंधन। न हो कहीं भी क्रन्दन।
बन जाए स्वर्ण धरा यह। बन जाए स्वर्ग ये दूजा॥
हम करें राष्ट्र की पूजा। हम करें राष्ट्र की पूजा॥
अपने जीवन सत्कर्मों से। और राष्ट्र प्रेम मर्मों से।
जग जाएं भारतवासी। इकजुट करें तेरी पूजा॥
हम करें राष्ट्र की पूजा। हम करें राष्ट्र की पूजा॥
हो सदा समर्पित तुझको। हर जीवन अर्पित तुझको।
हर बार जन्म तेरी धरती। गर जन्म मिले मुझे दूजा।
हम करें राष्ट्र की पूजा। हम करें राष्ट्र की पूजा॥
मिल गायें विपुल देश गान। मां तुझको हजारों सलाम।
है पावन सुंदर धरती। भारत सा न कोई दूजा॥
हम करें राष्ट्र की पूजा। हम करें राष्ट्र की पूजा॥
नमस्कार नमोऽस्तु
नमोऽस्तु परम ब्रह्म
दास विपुल
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धरे कभी गुरु रूप जो, कभी बना अव्यक्त॥
करूं प्रार्थना शक्तिमान, स्वयं को निर्बल जान।
सकल विश्व व्यापत रहे, जगदम्बिका परनाम॥
गुरू देव की स्तुति बिना, पूर्ण न कोई काम।
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु, गुरू गुणों की खान॥
सर्व देव विनती करूं, करूं विनय कर जोर।
दास विपुल चरणी पढ़ा, सुन लो विनती मोर।।
गुरुदेव आपके चरणों में
गुरुदेव आपके चरणों में
देवीदास विपुल
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जीवन यह समर्पित करता हूं, गुरुदेव आपके चरणों में।
मुझ पापी का उद्धार करो हूं, पड़ा आपके चरणों में॥
मन बंधन मुक्त नहीं होता, कितना ही जप तप ध्यान किया।
हो कृपा आपकी लेश मात्र, शब्द ज्ञान आपके चरणों में॥
मैं युगों युगों तक भटक फिरा, अनगित योनि संग भटका हूं।
अब मानव तन पाया मैंने, कर ध्यान आपके चरणों में॥
मैं भटक भटक कर भटक गया, जो मार्ग सही था भटक गया।
भटकन मेरी अब बंद हुई, शरणागत तेरे चरणों में॥
मां काली की जब कृपा तीर्थ, नित्यबोधानंद कृपा मिली।
बढ़ चलूं साधना के पथ पर, रख शीश तुम्हारे चरणों में॥
है दास विपुल की इच्छा यह, तेरे चरणों में लीन रहूं।
अनुकम्पा तुम्हारी मिले सदा, है यही प्रार्थना चरणों में॥
🙇 गुरुदेव आपके चरणों में समर्पित 🙇
Friday, February 14, 2020
अंत समय प्रायश्चित
अंत समय प्रायश्चित
देवीदस विपुल
जब अंत समय आए तेरा, तब प्राणी तू पछताएगा।राम नाम तो लिया नहीं है, अब जगत अंगूठा दिखाएगा॥
जब माया के बंधन सारे, तू छोड़ जगत से जाएगा।
तब नहीं साथ तेरे कुछ भी, बस राम नाम ही जाएगा॥
तब याद करेगा तू पिछली, बीती बातें जो बीत गई।
तब बंद मुट्ठी में रेत समय, की पकड़ नहीं तू पाएगा॥
तब तू समझेगा राम नाम, की महिमा न्यारी है कितनी।
पर समय न होगा राम नाम, का किस प्रकार तू गाएगा॥
तब तू समझे मानव जीवन, संतों ने अमोलक है गाया।
बस शनै शनै जो गंवा दिया, तब क्या कुछ तू कर पाएगा॥
इसलिए समझ ले रे मूरख, तीरथ शिव ओम् की किरपा ले।
तेरे अंदर में जब प्रकट हरि, मुक्ति मार्ग खुल जाएगा॥
है दास विपुल की इच्छा यह सारा जग राम का रस पी ले।
तब नहीं काल का भय होगा, इस ब्रह्म में ब्रह्म समाएगा॥
मैया तू जग की आधार
मैया तू जग की आधार
दास विपुल
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🙇मां तुम्हारे चरणों में समर्पित यह जीवन 🙇
मैया तू जग की आधार नहीं कुछ जग का है।मैया तू जग लीलाधार नहीं कुछ जग का है॥
तुम जग की पालनकर्ता हो सब कुछ तुझ से जन्मा।
आदि रूप शक्ति मां तू ही जग की तू विश्वकर्मा॥
मैया सब तेरा व्यवहार नहीं कुछ जग का है।
मैया तू जग की आधार नहीं कुछ जग का है॥
एक इशारा कर दे मां तू सृष्टि ही हिल जाए।
उथल पुथल सारे जग में महाप्रलय आ जाए।
दया दृष्टि डालें जिस पर वो राजा बनता है।
मूरख युवक युवराज बने कालीदास सजता है॥
शक्ति विराजे मूलाधार नहीं कुछ जग का है।
मैया तू जग की आधार नहीं कुछ जग का है॥
बरसे कृपा दृष्टि मां तेरी तब सृष्टि चल पाए।
मूक होए वाचाल पंगु परवत लांघ जाये॥
सुरासुर मुनि शीश झुका खड़े हैं तेरे द्वारे।
सुन भक्तों की माता दौड़े प्रेम सहित पुकारे॥
मैया नीच विपुल सम तार नहीं कुछ जग का है।
मैया तू जग की आधार नहीं कुछ जग का है॥
तू मुक्ति को देती माता भुक्ति भी तू देती।
सारे दुख हर कर माता सुख से घर भर देती॥
दास विपुल अधम है पापी द्वारे तेरे आया।
भर कर मन पाप हजारों तुझको शीश नवाया॥
मैया दे आशीष हजार नहीं कुछ जग का है।
मैया तू जग की आधार नहीं कुछ जग का है॥
🙇मां तुम्हारे चरणों में समर्पित यह जीवन 🙇
Thursday, February 13, 2020
मीरा बनो या राधा
मीरा बनो या राधा
देवीदास विपुल
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तुमसे मिलेंगे गिरधर मोहन को उर बसाओ॥
मीरा ने मोहन पाया सद्गुरु संग कृपा से।
राणा के विष का प्याला अमृत बना दिखाओ॥
राधा धरा पर आई शक्ति का मारग देने।
वह प्रेमी की थी मूरत वह प्रेम कर दिखाओ॥
मीरा के तन पर राणा पर मन के पति मोहन।
मोहन का नाम लेकर उस जैसे बन तो जाओ॥
जब काम संग हो तृष्णा और वासना बसी हो।
मोहन निवास कैसे मन खाली कर के आओ॥
मन में बसे थे मीरा तब सब दिशा में मोहन।
यह समझो मीरा क्या है किस्से पर तुम न जाओ॥
राधा थी शक्ति सुरूपा उन सा होना सरल न।
मीरा तो मानव रूपा यह भेद जान जाओ॥
मीरा का नाम लेकर हरि के भजन को गाओ।
हरि प्रेम है अनूठा दुनियां में इसको पाओ॥
तीरथ शिवोम् गुरुवर हैं मीरा के दीवाने।
मिल जायेगी कृपा भी हरि नाम के गुण गाओ॥
मूरख विपुल है पापी बन मीरा का दीवाना।
राधा को नहीं जाना पापी को यह समझाओ॥
है नित्य आन्नद संग में पर न विपुल यह जाने।
कुछ काव्य बन गये जो खुद को ही ज्ञानी मानें।
जो गर्व का है सागर और बोझ पाप गठरी।
गठरी को करके खाली सागर को भी सुखाओ॥
मीरा जगत दिखेगी संग न मोहन की भक्ति।
जब तक प्रज्ज्वल न दीपक समझो मिले न मुक्ति॥
हरि नाम है निराला सारे जग को तारता है।
गर अग्नि तेरे मन में गुरु की शरण में जाओ॥
मैया कैसे तुम्हें हम लुभायें
मैया कैसे तुम्हें हम लुभायें
देवीदास विपुल
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🙇मां तुम्हारे चरणों में समर्पित यह जीवन 🙇
मैया कैसे तुम्हें हम लुभायें मनवा नाहीं लागे।मैया कैसे तुम्हें हम मनायें मनवा नाहीं लागे॥
बड़े बड़े ज्ञानी ऋषि मुनि मिल लीला समझ न पायें।
ब्रह्मा संग विष्णु महिमा बखाने शिवजी तुझको ध्यायें।
विपुल मूरख समझ नहीं पाए मनवा नाहीं लागे॥
मैया कैसे तुमको मनायें मनवा नाहीं लागे॥
महिषासुर को सायुज्य देकर शुंभ निशुंभ पैठाया।
तनिक कृपा दैत्यों के ऊपर सबको स्वर्ग बसाया॥
मैया मूरख विपुल संग गाएं मनवा नाहीं लागे॥
मैया कैसे तुमको मनायें मनवा नाहीं लागे॥
तू जग की जग्जननी मैया माया में जग रचाई।
द्वार तेरे मैं आ न सकूं मां दुनियां करे हंसाई॥
मैया वासना विपुल न जाएं मनवा नाहीं लागे॥
मैया कैसे तुमको मनायें मनवा नाहीं लागे॥
मूरख विपुल भूला है तुझको उसको मारग दिखाना।
लंगड़ा कामी बहरा पापी वह जग से पार लगाना॥
मैया बुद्धि से भ्रमित हो जायें मनवा नाहीं लागे।
मैया कैसे तुमको मनायें मनवा नाहीं लागे॥
पूरी करो भक्तन की इच्छा भीड़ बहुत तेरे द्वारे।
जो थक जाते दुनिया से मांगे वो ही तुझे पुकारे॥
मैया पूरी करो जग की आस मनवा नाहीं लागे।
मैया कैसे तुमको मनायें मनवा नाहीं लागे॥
मशाल देश की
मशाल देश की
विपुल लखनवी
देश की मशाल आज, बढ़ के थाम लो।सुलग रहें हैं प्रश्न जो, बढ़ के थाम लो॥
देश से बड़ा कोई इस जगत में नहीं।
देश की लिये जीना है जान ही सही॥
देश के विरोधी जो हैं उनकी जान लो।
सुलग रहें हैं जो सवाल बढ़ के थाम लो॥
गर बचेगा देश यह तब ही बचे धरम।
जातिगत भेद भूलें एक ही होवे हम।।
हिन्द से है हिन्दू वतन यह भी जान लो।
सुलग रहें हैं जो सवाल बढ़ के थाम लो।।
सत्ता के व्यापार में ही देश लूट रहा।
नोटों से वोट ले मुफत देश बिक रहा॥
अब जाग जागो भाई मुठ्ठियां तान लो।
सुलग रहें हैं जो सवाल बढ़ के थाम लो॥
पहले मुगलों ने हमें कितना लूटा है।
गोरों की जुलमियत से भाग्य फूटा है॥
अब भी वक्त साथ तेरे यह तो मान लो।
सुलग रहें हैं जो सवाल बढ़ के थाम लो॥
नेता कैसे बनें
नेता कैसे बनें
विपुल लखनवी
उलटी सीधी बातें, कोई काम न करो।
नेता गर बनाना चाहो, चाहो जेब को भरो॥
देश की सम्पत्ति आग लगाओ तोड़ो।
नारेबाजी करो दो चार सिरों को फोड़ो ॥
देश को कोसो बिन गाली बात न करो।
उलटी सीधी बातें, कोई काम न करो॥
जो हो देश भक्त बिना आंसू के रुलाओ।
पुलिस को पीटो और बेकाबू हो जाओ॥
धरने प्रदर्शन करो चक्का जाम तुम करो।
उलटी सीधी बातें, कोई काम न करो॥
देखो फिर कैसे मीडिया तुमको पूजेगा।
देशद्रोही बन कर जिओ जरूर पूछेगा॥
सरेआम तिरंगे का अपमान तुम करो।
उलटी सीधी बातें, कोई काम न करो॥
बस समझो तेरा अब एक काम बन गया।
रातोरात गद्दारों का जब साथ मिल गया॥
देश के टुकड़े करने का प्रयास तुम करो।
उलटी सीधी बातें, कोई काम न करो॥
गद्दारों की कमी नहीं है अपने देश में।
उनसे मिलकर रहो बस नेता के वेश में।।
हाथ पैर जोड़ो टिकट का इंतजाम करो।
उलटी सीधी बातें, कोई काम न करो॥
तेरे अरमानों को पंख यूहीं मिलेगे।
तेरे नातेदारों के दिल यूहीं खिलेंगे॥
झूठी बातें बोलो विपक्ष को बदनाम करो।
उलटी सीधी बातें, कोई काम न करो॥
जैसे कुर्सी सत्ता की मिले पलट जाओ तुम।
जनता को मोफत लालीपाप थमाओ तुम॥
आरक्षण के कुछ मुद्दे को पुरजोर तुम करो।
उलटी सीधी बातें, कोई काम न करो॥
अल्पसंख्यक खतरे में बस यही चिल्लाओ।
तुष्टिकरण हेतु बीबी बेटी बेच जाओ॥
हिंदू बहुसंख्यक मुरदा इसे खतम ही करो।
उलटी सीधी बातें, कोई काम न करो॥
बाद में यह भारत सेकुलर राष्ट्र बनेगा।
तेरा तो बाप नहीं तू अल्पसंख्यक बनेगा॥
बस ऐसे मस्त रहो चिंता कुछ नहीं करो।
उलटी सीधी बातें, कोई काम न करो॥
बस ऐसे अपना देश कुछ समय चलेगा।
दलित हिंदू लड़ मरें नहीं कोई बचेगा॥
राजनीति की रोटी सेकों फिकर न करो।
उलटी सीधी बातें, कोई काम न करो॥
तुम पदवीधारी नेताओं के उस्ताद बन गये।
धूर्त कमीनों के मालिक सरताज बन गये॥
विपुल लखनवी को सदमा कैसे कुछ करो।
उलटे सीधे काम कर, अपने घर को भरो॥
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मां क्षमा करो (क्षमा प्रार्थना)
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मां क्षमा करो (क्षमा प्रार्थना)
दास विपुल
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🙇मां तुम्हारे चरणों में समर्पित यह जीवन 🙇
न जानूं मंत्र मैं माता, न जानूं यंत्र मैं माता।
न स्तुति मुद्रा है भाती, न पूजा रास है आती॥ न ध्यान मुझको है आता, अवाहन जानूं न माता।
कथा स्रोत रास न आवे, रिपु मूरख अति डरपावे॥
न मुद्रा तेरी मैं जानूं, न तुझको तनिक ही जानूं।
न व्याकुल अश्रु है गिरते, नहीं स्तुति गीत ही रचते॥
परन्तु मारग यह जानूं, तिहारे पीछे हो मानूं॥
वही सब कष्टों को हरता, सारे जग का है भरता।
जगत कल्याण करती मां, विपुल पापों को हरती मां॥
नहीं जानूं तरीका क्या, नहीं जानूं सलीका क्या॥
ये बुद्धि पाप संग डूबी। कुबुद्धि कुसंगत में डूबी।
कृपण कंजूस चपल मैं ही, करमहीन आलसी मैं ही॥
अराधन तेरी न करता, सदा माया रमण रमता।
मेरी जो त्रुटि रह जावे, तेरी दृष्टि नहीं आवे॥
कपूत पूत भी होते, कुमाता न होती माते।
पूत के अवगुण न देखे, सदैव आंसू को पोंछे॥
धरा पर सपूत बहुतेरे, रहें तुझको सदा घेरे।
परन्तु माता मैं चपला, दुष्ट पापी बना सबला॥
शिवे जो बिसरती मुझको, कदाचित शोभित न तुमको।
हां कपूत दुष्ट मैं माता, नहीं देखी है कुमाता॥
पूत के अवगुण न देखे, सदा उसका ही हित सोंचे।
नहीं तेरे चरण रोया, कभी न पापों को धोया॥
न तुझको दे सका अर्चन, कभी तेरा नहीं पूजन।
तथापि किरपा मां तेरी, निराली महिमा मां तेरी ॥
कारण इसका मैं मानूं, तेरी कृपा को ही जानूं।
लम्बोदर देव की जननी, परम शिवतत्व की भगिनी॥
मैं मूर्ख वृथा ही जाया, सभी देवों को रिझाया।
इस कारण माता रोया, जीवन पूरा ही खोया॥
समझ में अब मुझे आया, नहीं जब कुछ कहीं पाया।
तुम्हारा नाम ही काफी, न रहता फिर कहीं बाकी॥
तुझे गर अब नहीं भजता, किधर जाऊं भला भरता।
माता के मन्त्रों का अक्षर, प्रदाता शांति सुख आखर॥
विपुल मूरख जो अज्ञानी, बने सुपात्र और ज्ञानी।
तुम्हारी लेश सी किरिपा, बना दे भाग्य सुख बरपा॥
बने वह दीन से दाता, बने याचक से प्रदाता।
धरा पर सपूत बहुतेरे, रहें तुझको सदा घेरे।
परन्तु माता मैं चपला, दुष्ट पापी बना सबला॥
शिवे जो बिसरती मुझको, कदाचित शोभित न तुमको।
हां कपूत दुष्ट मैं माता, नहीं देखी है कुमाता॥
पूत के अवगुण न देखे, सदा उसका ही हित सोंचे।
नहीं तेरे चरण रोया, कभी न पापों को धोया॥
न तुझको दे सका अर्चन, कभी तेरा नहीं पूजन।
तथापि किरपा मां तेरी, निराली महिमा मां तेरी ॥
कारण इसका मैं मानूं, तेरी कृपा को ही जानूं।
लम्बोदर देव की जननी, परम शिवतत्व की भगिनी॥
मैं मूर्ख वृथा ही जाया, सभी देवों को रिझाया।
इस कारण माता रोया, जीवन पूरा ही खोया॥
समझ में अब मुझे आया, नहीं जब कुछ कहीं पाया।
तुम्हारा नाम ही काफी, न रहता फिर कहीं बाकी॥
तुझे गर अब नहीं भजता, किधर जाऊं भला भरता।
माता के मन्त्रों का अक्षर, प्रदाता शांति सुख आखर॥
विपुल मूरख जो अज्ञानी, बने सुपात्र और ज्ञानी।
तुम्हारी लेश सी किरिपा, बना दे भाग्य सुख बरपा॥
बने वह दीन से दाता, बने याचक से प्रदाता।
अक्षर की शक्ति है इतनी, मात का नाम तब कितनी॥
तभी मन होवे रोमांचित, पूरित सब मन जो इच्छित।
निरंतर नाम जो लेते, तुम्हारी भक्ति जन करते॥
उन्हें फिर पुण्य हैं कितने, गगन में नक्षत्र हैं जितने।
होता दुनिया में दुर्बल, तुम्हारी महिमा से सबल॥
चिता की राख है भूषण, लपेटे सर्प आभूषण।
हुये जो तत्व के ज्ञानी, रूद्राणी नाम जो जानी॥
बने जगदीश्वर सुशोभित, मिली मन कामना वांछित।
महिमा प्रबल क्यों इतनी, सकल ब्रह्मांड सम जितनी॥
सभी का एक ही कारण, तुम संग शिव पाणि ग्रहण।
कमल मुख चंद्र की शोभा, बिखेर कांति और आभा॥
मुझे न मोक्ष की आशा, नहीं वैभव की अभिलाषा।
न विज्ञान ज्ञान है वांछित, न कोई सुख मुझे इच्छित॥
मुझे एक विनय है आये, तुम्हारा नाम जप भाये।
मेरा जीवन यह सीखें, तेरे चरणों में बीते॥
मुद्राणी शिव शिव रूद्राणी, यही निकले मेरी वाणी।
यह है करम की भावना, मेरे अंतर की कामना॥
किया न तेरा आराधन, विविध पूजा न कुछ अर्चन।
मेरी कागा सी वाणी, सदैव करती रही हानि॥
अनेक पापों में खोया, तेरे चरण नहीं रोया।
न जानूं मात क्या करना, तुम हो पुत्रों की तरना॥
तुम्हारे सम दयालु मां, बनीं करूणा सागर मां।
मुझ सम पापी को आश्रय, बढ़ाई महिमा जग प्रश्रय॥
माता करुणा का सागर, तुम्ही हो ज्ञान की आगर।
तुम्हारे द्वार पर आया, तेरी महिमा को गाया॥
इसे अन्यथा नहीं लेना, मेरी शठता समझ लेना।
बालक भूखा हो प्यासा, नहीं कोई दिखे आशा॥
नहीं जाये किसी द्वारे, केवल मां तुझे पुकारे।
करे अपराध जो भारी, माता महिमा है न्यारी॥
न पुत्र मां को पहचाने, परंतु माता पुत्र मानें।
न करें मां कभी उपेक्षा, पूरित करती सदा इच्छा॥
न दुराचारी जग ऐसा, जगत में विपुल है जैसा।
तुम्हारे जैसा न कोई, विनाशे पाप जो होई॥
अत: हे माता तुम आओ, उचित जो हो करे जाओ।
क्षमा प्रार्थना हो पूरित, माता जो भक्त को इच्छित॥
तभी मन होवे रोमांचित, पूरित सब मन जो इच्छित।
निरंतर नाम जो लेते, तुम्हारी भक्ति जन करते॥
उन्हें फिर पुण्य हैं कितने, गगन में नक्षत्र हैं जितने।
होता दुनिया में दुर्बल, तुम्हारी महिमा से सबल॥
चिता की राख है भूषण, लपेटे सर्प आभूषण।
हुये जो तत्व के ज्ञानी, रूद्राणी नाम जो जानी॥
बने जगदीश्वर सुशोभित, मिली मन कामना वांछित।
महिमा प्रबल क्यों इतनी, सकल ब्रह्मांड सम जितनी॥
सभी का एक ही कारण, तुम संग शिव पाणि ग्रहण।
कमल मुख चंद्र की शोभा, बिखेर कांति और आभा॥
मुझे न मोक्ष की आशा, नहीं वैभव की अभिलाषा।
न विज्ञान ज्ञान है वांछित, न कोई सुख मुझे इच्छित॥
मुझे एक विनय है आये, तुम्हारा नाम जप भाये।
मेरा जीवन यह सीखें, तेरे चरणों में बीते॥
मुद्राणी शिव शिव रूद्राणी, यही निकले मेरी वाणी।
यह है करम की भावना, मेरे अंतर की कामना॥
किया न तेरा आराधन, विविध पूजा न कुछ अर्चन।
मेरी कागा सी वाणी, सदैव करती रही हानि॥
अनेक पापों में खोया, तेरे चरण नहीं रोया।
न जानूं मात क्या करना, तुम हो पुत्रों की तरना॥
तुम्हारे सम दयालु मां, बनीं करूणा सागर मां।
मुझ सम पापी को आश्रय, बढ़ाई महिमा जग प्रश्रय॥
माता करुणा का सागर, तुम्ही हो ज्ञान की आगर।
तुम्हारे द्वार पर आया, तेरी महिमा को गाया॥
इसे अन्यथा नहीं लेना, मेरी शठता समझ लेना।
बालक भूखा हो प्यासा, नहीं कोई दिखे आशा॥
नहीं जाये किसी द्वारे, केवल मां तुझे पुकारे।
करे अपराध जो भारी, माता महिमा है न्यारी॥
न पुत्र मां को पहचाने, परंतु माता पुत्र मानें।
न करें मां कभी उपेक्षा, पूरित करती सदा इच्छा॥
न दुराचारी जग ऐसा, जगत में विपुल है जैसा।
तुम्हारे जैसा न कोई, विनाशे पाप जो होई॥
अत: हे माता तुम आओ, उचित जो हो करे जाओ।
क्षमा प्रार्थना हो पूरित, माता जो भक्त को इच्छित॥
Wednesday, February 12, 2020
मन में राम टटोले जा
मन में राम टटोले जा
दास विपुल
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🙇गुरुदेव आपके चरणों में समर्पित 🙇
वाहेगुरू वाहेगुरू वाहेगुरू बोले जा।
मन में राम टटोले जा, मन में राम टटोले जा॥ राम का नाम जग में ऐसे फैले जग उजियारा।
राम नाम जो तूने पाया जग में सबसे न्यारा।
राम नाम लौ जग जाये गुरु चरणों में डोले जा।
वाहेगुरु वाहेगुरु वाहेगुरु बोले जा॥
गुरू मिले तो जग है तेरा सब कुछ तेरा अपना।
मिथ्या है जीवन, मिथ्या ही जग, मिथ्या हो जैसे सपना॥
गुरू नाम बस एक जगत में मुक्ति द्वार खोले जा।
वाहेगुरू वाहेगुरू वाहेगुरू बोले जा।
नित्यबोधानन्द जो शक्ति प्रतिबल तेरे संग में।
जो दीपक संग बाती जलती गुरू नाम तेरे मन में॥
चक्रों का चक्कर है सारा बैठे उड़न खटोले जा।
वाहेगुरू वाहेगुरू वाहेगुरू बोले जा॥
दास विपुल है महिमा जानी पर न भक्ति कीन्ही।
गुरू चरनन से दूर रहा मन चादर मैली कीन्ही॥
मैली चादर धोना हो तो गुरू कृपा धोले जा।
वाहेगुरु वाहेगुरु वाहेगुरु बोले जा॥
गुरुवर तू है कितना महान
गुरुवर तू है कितना महान
देवीदास विपुल
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गंगा यमुना देव सारे तीरथ, करते सदैव तेरा गान॥
बाल्मीकी को तूने तारा, तार अजामिल सा कसाई।
रत्ना नाम की गणिका तारी, बना डाला चतुर सुजान॥
मूर्ख युवक कालीदास बनाकर, काव्य की धारा बहाई।
महिमा तेरी अनन्त निराली, अज्ञान हटे मिले ज्ञान॥
तेरी पूजा कृष्ण भी कीन्ही, महिमा तेरी जग बताई॥
सियाराम तेरे चरण पखारे, तू ही ब्रह्म की है खान॥
तेरी लीला शिव जी गाई, माता पारवती समझाया।
देवीदास विपुल कर जोड़े, करे विनती गुरू का ध्यान॥
मुझको पार लगाओगे
मुझको पार लगाओगे
विपुल लखनवी, नवी मुम्बई
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पाप पुण्य प्रभु तुझे समर्पित। मुझको पार लगाओगे॥
चरण में तेरे पड़ा हूं भगवन। कैसे तुम बच पाओगे॥
ठोकर मारो या तुम पीटो। चरण नहीं मैं छोडूंगा॥
मैं चाकर हूं तुम हो मालिक। बारम्बार बुलाओगे॥
युगांतरों से भटका हूं मैं। द्वार तेरा अब पाया हूं॥
तेरे द्वारे का मैं कूकर। कैसे मुझे भगाओगे॥
तेरी जूठन मिल जाती तो। बड़े भाग्य बन जाते हैं॥
मैं भोकूं तो सुनकर प्रभु जी। मुझे डांटने आओगे॥
छवि तुम्हारी देखने खातिर। बार-बार झाकूं भीतर।
तुम भीतर विश्वास है मेरा। कब तुम मुझे हकाओगे॥
दास विपुल सभी करे समर्पित। कर्म विकर्म अकर्म सभी।।
फल यह तेरे भोग भी तेरा। भूख लगे तो खाओगे।।
इक विनती पर सुन लो प्रभु जी। ह्रदय निवास न छोड़ोगे।।
जिस दिन तुम छोड़ोगे घर को। दास विपुल नहीं पाओगे।।
मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए
मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य
मित्रो ईश्वर जो करता है। उसमें कल्याण ही छिपा होता है। किसी ने एक ग्रुप में मुझसे वेद पर बहस की। मस्ती में मैंनें हर जबाब काव्मय दे दिया। परिणाम यह हुआ मेरी एक कविता भजन बन गई।न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
काली कृष्ण नाम जपूँ और कुछ नहीं। सदा याद उसे रखूं और कुछ नहीं॥
गुरू मेरे ईश भगवन् जानता मैं। गुरू कृपा सब कुछ मिले मानता मैं॥
गुरू नाम काली नाम शिवओम् कृपा। मुझे गुरूकृपा का सद्ज्ञान चाहिए॥
न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
पुस्तकीय ज्ञान से मुझे मतलब नहीं। किसी के अभिमान मुझे मतलब नहीं॥
हिरदय में नहीं रहे कोई भावना। नहीं कोई शेष रही मेरी कामना॥
रामरस सदा पियूं डूबा मैं रहूं। गुरू के प्याले से ही पान मैं करूं॥
मैं नशेड़ी बन गया हूं राम नाम का। मुझे नशा राम मिले जाम चाहिए॥
न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
क्या उनको समझाऊं जो दीमक बने। रामरस पिया न न नशेड़ी ही बने॥
मैं पियक्कड़ बना रहूं राम नाम का। बाकी नशा अब मेरे किस काम का॥
नशा यह है राम का साकी है गुरू। नशा पीना सीख लिया जीवन तब शुरू॥
कीमत जिसकी कुछ नहीं जी भर पियो। टूटे नहीं नशा सुबो शाम चाहिए॥
न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
ज्ञान और विज्ञान सब चरणों की धूल। गुरूकृपा मिलती रहे जग जाओ भूल॥
काली की कृपा और गुरूज्ञान क्या। मातृ शक्ति बनी गुरुवर भान है क्या॥
देवीदास प्रभुदास चरणों की धूल। गुरूकृपा मिली विपुल सब गया भूल॥
नहीं मुझे कुछ और बाकी ज्ञान क्या। पुस्तक व्यर्थ नहीं उसका भान चाहिये॥
न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
वेदों के भी अनुभव को पी लिया अब। योग भोग रोग सहित जी लिया सब॥
रामनाम मेरे मन में गूंजता रहें। नहीं कोई जिज्ञासा मन ढूंढता रहे॥
अब श्रुति ज्ञान क्या है गीता जब प्रकट। राम एक कर्ता हरे सारे संकट॥
बन जाऊं आत्माराम राम जो मिले। रक्ष परमेश्वरी वरदान चाहिये॥
न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
मूरख है वे जो वाहिक ज्ञान खोजते। दीमक बन पुस्तकों की थाह थोपते॥
ब्रह्म संग भृमण करूँ साथ रहूं मैं। जगती के कण कण में राम देखूं मैं॥
जीवन सारा बीते यह शिव ही जपे। दूजे किसी काम हेतु समय न खपे॥
राम नाम आनंद बस आनंद की बात। निराकार वो है पर साकार चाहिए॥
न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
मैंने कुछ मांगा नहीं जाना नहीं क्या। मूरख अज्ञानी बनकर शरण में गया॥
पर उस शक्ति ने वोह ज्ञान दे दिया। ब्रह्मा ब्रह्मांड सारा भान दे दिया॥
एक पलभर में सब कुछ घटित हो गया। अचरच में पड़ा विपुल चकित रह गया॥
अद्भुत लीला कैसी प्रभु ने रची। मन में कोई इच्छा न हो वर चाहिये॥
न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
मेरी कोई इच्छा नहीं भाव नहीं। नहीं कोई जिज्ञासा है अब ताव नहीं।।
बस एक बात जानूं हाथ मेरे वो। हर एक क्षण साथ रहे हर सांस जो॥
धन्य हुआ जीवन मेरा प्यार जो मिला। काली गुरू प्रेमल भक्ति कमल खिला॥
अब मैं तो बेहद आलसी कुछ न करूं। संग रहूं उसके कुछ न काम चाहिए॥
न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
मैं तो रामदास हूँ कालीका दास। जगत कुछ समझे नहीं कहे उपहास॥
अब मैं कुछ करता नहीं राम करे काम। हर काम वो ही करे मैं करूं विश्राम॥
करता भरता हरता जो राम नाम है। मैं भी कुछ करता हूं मूरख ज्ञान है॥
जब इस जगती में मेरी क्या बिसात। मैं तो मदमस्त हूं आराम चाहिये॥
न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
जब तक राम को पाने पा गल न बनो। जब सब राम का लक्ष्य ताने न बुनो॥
भूत बनी पुस्तक डराएंगी तुम्हें। शब्दों के जंगल में भटकायेंगी तुम्हे॥
यही वेद समय पा रुलायेंगे तुम्हें। रूप अपना जब ये दिखायेगे तुम्हें॥
एक छोर गुरू कृपा प्रभु कृपा हो। तोता ज्ञान छोड़ सद्ज्ञान चाहिए॥
न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
जीवन वृथा बीत गया पड़े सो रहे। तार्किक विवादों में ही उलझे रहे॥
अब यम द्वारे ढाड़ा सोचूं क्या करूं। जब सांसे साथ नहीं कैसे कुछ करूं॥
जीवन भर दौड़ा हाथ में कुछ नहीं। रहा हांफता सदा साथ में कुछ नहीं॥
अब गुरू कहां मिले ध्यान क्या करूं। कैसे मिले मुक्ति वरदान चाहिए॥
न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
वेद को जब चाट लिया क्यों रो रहे। अनुभव कुछ मिला नहीं वेद जो कहे॥
तेरी हर बात का इस काव्य में जवाब। वेदज्ञान पाठ नहीं अनुभव का सबाब॥
तोता बन पढ़ते रहे समझ नहीं कुछ। दूजे की सुना नहीं समझा उसे तुच्छ॥
प्रभु कृपा गुरू मिले गुरू से प्रभु। कर जप भक्ति गर निरवाण चाहिये॥
न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
अब भी तू न समझे नादां है जनाब। पता नहीं देखता क्या कैसे हैं ख्वाब॥
काव्य धारा बहती रहे हृदय को छू। क्या ये जो मातृ कृपा नहीं देखे तू।
अपने को ज्ञानी बन ज्ञान दे रहे। दूजे को मूरख सोंच सम्मान ले रहे॥
मान मेरी बात नेक जतन कर लो। इष्ट मंत्र जाप कर गर राम चाहिए॥
न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
ये ही तुझे तारे बस गांठ बांध ले। समय जो पास तेरे सांठ बांध ले॥
जीवन का लक्ष्य यही इसको जान ले। देवीदास विपुल की भी कभी मान ले॥
जीवन है भुक्ति जिसमें मुक्ति का मार्ग। राम नाम सारे नाम ईश के मार्ग॥
गुरू हेतु भटको नहीं जाप कर लो। नहीं कुछ बोलूं अब विश्राम चाहिए॥
न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
उद्धार की एक सलाह, नेक सलाह