Monday, October 12, 2020

विपुल लखनवी का उलट पद

  विपुल लखनवी का उलट पद

 मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य

                                साधो हरिनाम दुखदाई।  

हरिनाम सुन नेत्र सजल भये,  हिरदय टीस उठाई।।

हरिनाम की बाजे बांसुरी , जग में मैं बौराई।

मैं बिरहन एक हरिनाम की, उर हरिनाम लगाई।

नेह नाते टूटे जगत के, जग में होत हंसाई।।

जित देखू तित हरि ही दीखे, चहुंदिश श्याम दिखाई।

मैं बावरिया रहूं सुलगती, श्वांस कबहुं रुक जाई।

हर धडकन में हरि डोलत है, हरित हरी हरियाई ।

वह निष्ठुर निरमोही ऐसा, नहीं करें कुड़माई॥

अब पछताऊं हिरदय देकर, जीवन उत दे आई।

मत करियो तुम प्रेम हरि संग, वह निष्ठुर हरजाई॥

यह‌ कैसी है लीला हरि की, प्रेम करो तो भागे।

दास विपुल हरिनाम लुटा है,  हरिनाम मिटी जाई॥


 

 

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