Wednesday, February 12, 2020

मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए

मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए 

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,


मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य

मित्रो ईश्वर जो करता है। उसमें कल्याण ही छिपा होता है। किसी ने एक ग्रुप में मुझसे वेद पर बहस की। मस्ती में मैंनें हर जबाब काव्मय दे दिया। परिणाम यह हुआ मेरी एक कविता भजन बन गई।

न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥
काली कृष्ण नाम जपूँ और कुछ नहीं। सदा याद उसे रखूं और कुछ नहीं॥
गुरू मेरे ईश भगवन् जानता मैं। गुरू कृपा सब कुछ मिले मानता मैं॥
गुरू नाम काली नाम शिवओम् कृपा। मुझे गुरूकृपा का सद्ज्ञान चाहिए॥

न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥

 

पुस्तकीय ज्ञान से मुझे मतलब नहीं। किसी के अभिमान मुझे मतलब नहीं॥
हिरदय में नहीं रहे कोई भावना। नहीं कोई शेष रही मेरी कामना॥
रामरस सदा पियूं डूबा मैं रहूं। गुरू के प्याले से ही पान मैं करूं॥
मैं नशेड़ी बन गया हूं राम नाम का। मुझे नशा राम मिले जाम चाहिए॥
 
न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥



क्या उनको समझाऊं जो दीमक बने। रामरस पिया न न नशेड़ी ही बने॥
मैं पियक्कड़ बना रहूं राम नाम का। बाकी नशा अब मेरे किस काम का॥
नशा यह है राम का साकी है गुरू। नशा पीना सीख लिया जीवन तब शुरू॥
कीमत जिसकी कुछ नहीं जी भर पियो। टूटे नहीं नशा सुबो शाम चाहिए॥
 
न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥


 
ज्ञान और विज्ञान सब चरणों की धूल। गुरूकृपा मिलती रहे जग जाओ भूल॥
काली की कृपा और गुरूज्ञान क्या। मातृ शक्ति बनी गुरुवर भान है क्या॥
देवीदास प्रभुदास चरणों की धूल। गुरूकृपा मिली विपुल सब गया भूल॥
नहीं मुझे कुछ और बाकी ज्ञान क्या। पुस्तक व्यर्थ नहीं उसका भान चाहिये॥

न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥



वेदों के भी अनुभव को पी लिया अब। योग भोग रोग सहित जी लिया सब॥
रामनाम मेरे मन में गूंजता रहें। नहीं कोई जिज्ञासा मन ढूंढता रहे॥
अब श्रुति ज्ञान क्या है गीता जब प्रकट। राम एक कर्ता हरे सारे संकट॥ 
बन जाऊं आत्माराम राम जो मिले। रक्ष परमेश्वरी वरदान चाहिये॥

न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥

 

मूरख है वे जो वाहिक ज्ञान खोजते। दीमक बन पुस्तकों की थाह थोपते॥
ब्रह्म संग भृमण करूँ साथ रहूं मैं। जगती के कण कण में राम देखूं मैं॥
जीवन सारा बीते यह शिव ही जपे। दूजे किसी काम हेतु समय न खपे॥
राम नाम आनंद बस आनंद की बात। निराकार वो है पर साकार चाहिए॥

न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥

 

मैंने कुछ मांगा नहीं जाना नहीं क्या। मूरख अज्ञानी बनकर शरण में गया॥
पर उस शक्ति ने वोह ज्ञान दे दिया। ब्रह्मा ब्रह्मांड सारा भान दे दिया॥
एक पलभर में सब कुछ घटित हो गया। अचरच में पड़ा विपुल चकित रह गया॥
अद्भुत लीला कैसी प्रभु ने रची। मन में कोई इच्छा न हो वर चाहिये॥

न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥

 

मेरी कोई इच्छा नहीं भाव नहीं। नहीं कोई जिज्ञासा है अब ताव नहीं।।
बस एक बात जानूं हाथ मेरे वो। हर एक क्षण साथ रहे हर सांस जो॥
धन्य हुआ जीवन मेरा प्यार जो मिला। काली गुरू प्रेमल भक्ति कमल खिला॥
अब मैं तो बेहद आलसी कुछ न करूं। संग रहूं उसके कुछ न काम चाहिए॥

न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥

 

मैं तो रामदास हूँ कालीका दास। जगत कुछ समझे नहीं कहे उपहास॥
अब मैं कुछ करता नहीं राम करे काम। हर काम वो ही करे मैं करूं विश्राम॥
करता भरता हरता जो राम नाम है। मैं भी कुछ करता हूं मूरख ज्ञान है॥ 
जब इस जगती में मेरी क्या बिसात। मैं तो मदमस्त हूं आराम चाहिये॥

न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥

 

जब तक राम को पाने  पा  गल न बनो। जब सब राम का लक्ष्य ताने न बुनो॥
भूत बनी पुस्तक डराएंगी तुम्हें। शब्दों के जंगल में भटकायेंगी तुम्हे॥
यही वेद समय पा रुलायेंगे तुम्हें। रूप अपना जब ये दिखायेगे तुम्हें॥
एक छोर गुरू कृपा प्रभु कृपा हो। तोता ज्ञान छोड़ सद्ज्ञान चाहिए॥

न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥

 

जीवन वृथा बीत गया पड़े सो रहे। तार्किक विवादों में ही उलझे रहे॥
अब यम द्वारे ढाड़ा सोचूं क्या करूं। जब सांसे साथ नहीं कैसे कुछ करूं॥
जीवन भर दौड़ा हाथ में कुछ नहीं। रहा हांफता सदा साथ में कुछ नहीं॥
अब गुरू कहां मिले ध्यान क्या करूं।  कैसे मिले मुक्ति वरदान चाहिए॥

न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥

 

वेद को जब चाट लिया क्यों रो रहे। अनुभव कुछ मिला नहीं वेद जो कहे॥
तेरी हर बात का इस काव्य में जवाब। वेदज्ञान पाठ नहीं अनुभव का सबाब॥
तोता बन पढ़ते रहे समझ नहीं कुछ। दूजे की सुना नहीं समझा उसे तुच्छ॥
प्रभु कृपा गुरू मिले गुरू से प्रभु। कर जप भक्ति गर निरवाण चाहिये॥

न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥

 

अब भी तू न समझे नादां है जनाब। पता नहीं देखता क्या कैसे हैं ख्वाब॥
काव्य धारा बहती रहे हृदय को छू। क्या ये जो मातृ कृपा नहीं देखे तू।
अपने को ज्ञानी बन ज्ञान दे रहे। दूजे को मूरख सोंच सम्मान ले रहे॥
मान मेरी बात नेक जतन कर लो। इष्ट मंत्र जाप कर गर राम चाहिए॥

न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥

 

ये ही तुझे तारे बस गांठ बांध ले। समय जो पास तेरे सांठ बांध ले॥
जीवन का लक्ष्य यही इसको जान ले। देवीदास विपुल की भी कभी मान ले॥
जीवन है भुक्ति जिसमें मुक्ति का मार्ग। राम नाम सारे नाम ईश के मार्ग॥
गुरू हेतु भटको नहीं जाप कर लो। नहीं कुछ बोलूं अब विश्राम चाहिए॥
न नाम चाहिए और न दाम चाहिए। मुझे बस मेरा प्यारा राम चाहिए॥





उद्धार की एक सलाह, नेक सलाह

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