Tuesday, October 13, 2020

अजीब किस्म की गरीब दुनिया

 अजीब किस्म की गरीब दुनिया

विपुल लखनवी


फेंको फेंको कुछ भी फेंको। सब चलता है इस दुनिया में॥

गली गली ज्ञानी बैठें हैं। पर न ज्ञानी मिले दुनिया में॥

सब खोलें हैं अपनी दुकान। राम नाम महिमा नहीं जान॥

बन चेला हूं गुरु मैं तेरा। मुझको अपना गुरू तू मान॥

विपुल खड़ा अचरज में देखे। उलटी वाणी सबकी देखे॥

दूजे को उपदेश बताते।  खुद नहीं रत्ती भर हैं सीखे॥

अजीब खेल है यह संसारी। लालच से जगती है हारी॥  

सभी दिखें मन जो है निर्धन।  कैसे हडपे दूजे का धन॥  


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