मां काली गुरू लीला
देवीदास विपुल
वापिस जाने के लिये अन्य ज्ञानवर्धक रोचक लेख के लिंक: 👇👇
जय मां काली तेरी लीला, सदैव है करती खेल यहां।
तेरी माया सब कर सकती, बेमेलों के भी मेल यहां।।
मैं तो अदना सा प्राणी हूं, है क्या बिसात मेरी माता।
राजा रंक बनाती रहती, करती रहती तू खेल यहां।।
नहीं समझ पाया इस जगती, कैसे करूं व्यवहार दुनियां।
मैं अज्ञानी विपुल नाम संग, नहीं मिले कुछ भी मेल यहां।।
सदा मुक्त बनो मुक्त विचरो, है मुक्त का कोई बंधन न।
तुम मुक्त आत्मा धरा पर हो, तेरा कुछ न जग निबंधन यहां।।
तुम मुक्त जगह से आए थे, पर जग में बंधन कर डाले।
जब जाओगे इस जगती से, तब हो कौन सा बंधन यहां।।
तुम मुक्त रहो कर्तव्य करो, पर बंधन से न बंध जाना।
यह श्वास तेरी मुक्ति बंधन, कर लो इसका अभिनंदन यहां।।
है विपुल मुक्त इन बंधन से, नहीं कुछ लेना न कुछ बाकी।
गुरू के बंधन बंध जाओ, होगा न कोई बंधन जहां।।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
No comments:
Post a Comment