अजीब किस्म की गरीब दुनिया
अजीब किस्म की गरीब दुनिया
विपुल लखनवी
फेंको फेंको कुछ भी फेंको। सब चलता है इस दुनिया में॥
गली गली ज्ञानी बैठें हैं। पर न ज्ञानी मिले दुनिया में॥
सब खोलें हैं अपनी दुकान। राम नाम महिमा नहीं जान॥
बन चेला हूं गुरु मैं तेरा। मुझको अपना गुरू तू मान॥
विपुल खड़ा अचरज में देखे। उलटी वाणी सबकी देखे॥
दूजे को उपदेश बताते। खुद नहीं रत्ती भर हैं सीखे॥
अजीब खेल है यह संसारी। लालच से जगती है हारी॥
सभी दिखें मन जो है निर्धन। कैसे हडपे दूजे का धन॥
No comments:
Post a Comment