विपुल लखनवी का उलट पद
  विपुल लखनवी का उलट पद
                                साधो हरिनाम दुखदाई।  
हरिनाम सुन नेत्र सजल भये,  हिरदय टीस उठाई।।
हरिनाम की बाजे बांसुरी , जग में मैं बौराई।
मैं बिरहन एक हरिनाम की, उर हरिनाम लगाई।
नेह नाते टूटे जगत के, जग में होत हंसाई।।
जित देखू तित हरि ही दीखे, चहुंदिश श्याम दिखाई।
मैं बावरिया रहूं सुलगती, श्वांस कबहुं रुक जाई। 
हर धडकन में हरि डोलत है, हरित हरी हरियाई । 
वह निष्ठुर निरमोही ऐसा, नहीं करें कुड़माई॥ 
अब पछताऊं हिरदय देकर, जीवन उत दे आई। 
मत करियो तुम प्रेम हरि संग, वह निष्ठुर हरजाई॥ 
यह कैसी है लीला हरि की, प्रेम करो तो भागे।
दास विपुल हरिनाम लुटा है,  हरिनाम मिटी जाई॥ 
 
 
 
 
 
          
      
 
  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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