कवि विपुल “लखनवी” / Kavi Vipul Luckhnavi
More on: vipkavi.info / =-=-=-=-=-=-=-=- freedhyan.blogspot.com
Search This Blog
Tuesday, October 13, 2020
अजीब किस्म की गरीब दुनिया
अजीब किस्म की गरीब दुनिया
विपुल लखनवी
फेंको फेंको कुछ भी फेंको। सब चलता है इस दुनिया में॥
गली गली ज्ञानी बैठें हैं। पर न ज्ञानी मिले दुनिया में॥
सब खोलें हैं अपनी दुकान। राम नाम महिमा नहीं जान॥
बन चेला हूं गुरु मैं तेरा। मुझको अपना गुरू तू मान॥
विपुल खड़ा अचरज में देखे। उलटी वाणी सबकी देखे॥
दूजे को उपदेश बताते। खुद नहीं रत्ती भर हैं सीखे॥
अजीब खेल है यह संसारी। लालच से जगती है हारी॥
सभी दिखें मन जो है निर्धन। कैसे हडपे दूजे का धन॥
एक लम्बा पद : साधो! ले लो राम का साथ
एक लम्बा पद : साधो! ले लो राम का साथ।
विपुल लखनवी
मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य
साधो! ले लो राम का साथ।
जिसके मन में राम नहीं वह, जग में रहता अनाथ।
सियाराम ही शक्ति स्वरूपा, शिव भी जपे दिन रात॥
राम नाम को जपते जपते, तू हो अपने साथ।
राम नाम तेरी श्वास बसे, कर मुझपर विशवास॥
कितने पापी तार दिये है, राम नाम जिन्हें पास।
रोम रोम में वो बसता है, पकड़े बढाकर हाथ॥
रासी रगड़ रगड़ से घिसकर, पत्थर भी घिसै जात।
मन को रगड़े राम नाम से, राम नाम सौगात॥
बाल्मीकी ने कथा सुनाई, तुलसी लिखी गाथ।
केवट शबरी को भी तारा, पूछे न कोई जात॥
अपने भीतर उसे पकड़ ले, कभी बाहर न आये।
दास विपुल उसे पकड़े छोड़े, जगत परिपंच दे मात॥
नित्यबोधानंद गुरूवर, कृपा शिवोम् मिल जाये।
दास विपुल का जीवन तर दे, विनती करूं दिन रात॥
Monday, October 12, 2020
एक पद : राम नाम सुखदाई साधु
एक पद : राम नाम सुखदाई साधु
विपुल लखनवी
मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य
राम नाम सुखदाई रे साधु।
रामनाम इक सत्य भया जग, शेष जगत दुखदाई।
कहत सदा से सुरमुनि जग में, राम नाम अधिकाई॥
साधु रामदास अस धारा, बांकुर शिवा बनाई।
राम नाम को जपते तुलसी, रामचरित जग गाई।।
राम नाम ही जपत कबीरा, महायोगी बन जाई।
राम नाम की महिमा गाकर, गुरु नानक गुरुआई।।
कितने पापी तर के जाएं, राम नाम को गाकर।
विठ्ठल विठ्ठल तुका जपे जब, हरि के दरशन पाई।।
राम कहो चाहे कृष्ण कहो, राम नाम जप जाई।
नाम किसी भी देव का ले लो, राम नाम भरपाई।।
देवीदास विपुल ही पापी, राम विमुख जगजाई।
हैं हनुमत सदा ही सहायक, महिमा राम जताई।।
चेन से चैन नहीं
चेन से चैन नहीं
विपुल लखनवी
चेंन चैन नहीं दे सके, पहनो यह दिन रात।
राम नाम के बैन से, शान्ति मिलती आप।।
चेंन एक जंजीर है, स्वर्ण रजत या लौह।
यह बंधन है ग्रीव में, मुक्त नहीं है वोह।।
प्रभु नाम ही काटता, जगती के जंजाल।
चैन तभी पा पायेगा, मूरख मन में पाल।।
काल कोरोना मिल गया, कर इसका सदुपयोग।
दास विपुल की मान लें, कर ले तू परयोग।
विपुल लखनवी का उलट पद
विपुल लखनवी का उलट पद
मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य
साधो हरिनाम दुखदाई।
हरिनाम सुन नेत्र सजल भये, हिरदय टीस उठाई।।
हरिनाम की बाजे बांसुरी , जग में मैं बौराई।
मैं बिरहन एक हरिनाम की, उर हरिनाम लगाई।
नेह नाते टूटे जगत के, जग में होत हंसाई।।
जित देखू तित हरि ही दीखे, चहुंदिश श्याम दिखाई।
मैं बावरिया रहूं सुलगती, श्वांस कबहुं रुक जाई।
हर धडकन में हरि डोलत है, हरित हरी हरियाई ।
वह निष्ठुर निरमोही ऐसा, नहीं करें कुड़माई॥
अब पछताऊं हिरदय देकर, जीवन उत दे आई।
मत करियो तुम प्रेम हरि संग, वह निष्ठुर हरजाई॥
यह कैसी है लीला हरि की, प्रेम करो तो भागे।
दास विपुल हरिनाम लुटा है, हरिनाम मिटी जाई॥
मौन में वो कौन
मौन में वो कौन
विपुल लखनवी
मौन में वो कौन है जो गूंजता उर में मेरे।
इस हृदय में कौन रहता पास रहता जो मेरे॥
इक कहानी बन चली है मौन से चुपचाप उठकर।
है नहीं नायक कहीं भी प्रश्न यही मुझको घेरे॥
वाणी मेरी मौन है और शब्दों में परिहास है।
मूक रहकर कौन गाता गीत जो ठहरे सुनहरे॥
नहीं उसे मैं जान पाऊं जीवन मांझी कौन है।
क्या सफल होगा विपुल हैं कौन से चेहरे मेरे॥
Subscribe to:
Posts (Atom)