गायन्ती देवा गायत्री माता
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देवीदास विपुल
गायन्ती देवा गायत्री माता। जग की विधाता गायत्री माता॥
करतार जग की गायत्री माता। भरतार जग की गायत्री माता॥
वेदों का सार तुम्ही हो माता। सृष्टि आधार तुम ही हो माता॥
आदिशक्ति तुझी में है समाई। भक्तजन की भक्ति गायत्री माता॥
जगत का ज्ञान तुम से ही प्रकटे। ज्ञान विज्ञान मां तुम्ही से उपजे॥
महिमा तेरी कोई न जाने। पर सबको जाने गायत्री माता॥
पंचमुखों का मां रूप बनाया। असुरों को पाताल पैठाया॥
भक्तों को सदा सुख देने वाली। सब इच्छित देती गायत्री माता॥
दास तेरा विपुल महिमा गाये। तुझको कभी न पलभर बिसराए॥
भक्तों को शक्ति देने वाली तू। ज्ञानी का ज्ञान गायत्री माता॥
तेरे नाम से भय भी कांपे। काल डरे डरकर मुख को ढांपे॥
तू ही अमरता का वर देती। अमृत घट दे गायत्री माता॥
भोला शंकर तेरी स्तुति गाएं। ब्रह्मा विष्णु तेरा पार न पाएं॥
तू ही ब्रह्मा को ब्रह्माण बनाती। जगत चलाती गायत्री माता॥
यज्ञ का भाग तुझ ही से उपजे। स्वाहा सुधा तुझसे ही उपजे॥
तू ही सदा जग पालन करे मां। तू ही जगदंबे गायत्री माता॥
सारा ज्ञान ध्यान तेरा जग में। सारे तीरथ धाम हैं तुझमें॥
तू ही वेदों को जनम है देती। वेद का ज्ञान है गायत्री माता॥
प्रभु शिव ओम् ने गाया तुमको। नित्य बोधा नन्द पाया तुझको॥
साथ कभी न छूटे तेरा मां। सदा दे सहारा गायत्री माता॥
जब तक तन मेरे प्राण रहे मां। प्रतिपल तेरा ही ध्यान रहे मां॥
मुझे मुक्ति का मारग दिखाओ। कैसे हो मुक्ति गायत्री माता॥
हम शठ अज्ञानी बालक हैं तेरे। महा आलसी कर पाप घनेरे॥
पर तेरी शरणी आन पड़े मां। शरण में ले लो गायत्री माता॥
गीता में प्रभु कृष्ण ने गाया। मंत्र गायत्री सर्वश्रेष्ठ बताया॥
भक्त को ज्ञान सदा देती रहना। ज्ञान दायक है गायत्री माता॥
जो जन आरती गायत्री गावे। प्रेम सहित माता को ही ध्यावे॥
सभी मनोरथ होते हैं पूरित। फल दायक हैं गायत्री माता॥
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