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Monday, March 2, 2020

आत्म अवलोकन

आत्म अवलोकन 

विपुल लखनवी


सुमनों के बीच आकार आज मैं इठला गया हूं।

सूंघकर मादक सुगन्ध अकिंचन ही इतरा गया हूं॥

 

मैं समझने यही लगा था मैं ही खुद हूं बागवां।

तितली की चाह में दौड़ा न मिली बौरा गया हूं॥


थक गया मैं कुछ चलकर दोपहर की तेज धूप में।

छांव की कीमत कुछ समझी जब उसको पा गया हूं॥ 

 

रात्रि नीरव चल पड़ा था जुगनुओं की भीड़ संग।

इक कतरा रोशनी को पाकर ही घबरा गया हूं॥


नाते रिश्ते जो मिले थे दुनियादारी दे गए।

पर जगत के साथ चलकर उनको भी निभा गया हूं॥ 

 

जख्म गहरे जो मिले थे टीस ऐसी दे गए कुछ।

गलत सही कुछ भी किया इलाज खुद ही पा गया हूं॥


दुनिया को पढ़ता रहा पर खुद को ही न पढ़ सका।

खुद रहा अनपढ़ सदा दूजे को समझा गया हूं॥ 

 

है विपुल सब कुछ निराला गणित का नहीं सूत्र है।

जिन्दगी की दौड़ में सबसे पीछे आ गया हूं॥



3 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति है 🙏👍👍

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद उत्साहवर्धन हेतु। कृपया टिप्पणी करते रहें साथ ही औरों को शेयर करें। धन्यवाद

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद उत्साहवर्धन हेतु। कृपया टिप्पणी करते रहें साथ ही औरों को शेयर करें। धन्यवाद

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