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Thursday, February 13, 2020

मीरा बनो या राधा

मीरा बनो या राधा 

देवीदास विपुल 

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मीरा बनो या राधा बन कर के तो दिखाओ।
तुमसे मिलेंगे गिरधर मोहन को उर बसाओ॥
मीरा ने मोहन पाया सद्गुरु संग कृपा से।
राणा के विष का प्याला अमृत बना दिखाओ॥ 



राधा धरा पर आई शक्ति का मारग देने।
वह प्रेमी की थी मूरत वह प्रेम कर दिखाओ॥
मीरा के तन पर राणा पर मन के पति मोहन।
मोहन का नाम लेकर उस जैसे बन तो जाओ॥ 

 

जब काम संग हो तृष्णा और वासना बसी हो।
मोहन निवास कैसे मन खाली कर के आओ॥
मन में बसे थे मीरा तब सब दिशा में मोहन।
यह समझो मीरा क्या है किस्से पर तुम न जाओ॥ 



राधा थी शक्ति सुरूपा उन सा होना सरल न।
मीरा तो मानव रूपा यह भेद जान जाओ॥
मीरा का नाम लेकर हरि के भजन को गाओ।
हरि प्रेम है अनूठा दुनियां में इसको पाओ॥ 



तीरथ शिवोम् गुरुवर हैं मीरा के दीवाने।
मिल जायेगी कृपा भी हरि नाम के गुण गाओ॥
मूरख विपुल है पापी बन मीरा का दीवाना।
राधा को नहीं जाना पापी को यह समझाओ॥ 



है नित्य आन्नद संग में पर न विपुल यह जाने।
कुछ काव्य बन गये जो खुद को ही ज्ञानी मानें।
जो गर्व का है सागर और बोझ पाप गठरी।
गठरी को करके खाली सागर को भी सुखाओ॥ 




मीरा जगत दिखेगी संग न मोहन की भक्ति।
जब तक प्रज्ज्वल न दीपक समझो मिले न मुक्ति॥
हरि नाम है निराला सारे जग को तारता है।
गर अग्नि तेरे मन में गुरु की शरण में जाओ॥

 


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