तुलसीदास कृत रुद्राष्टकम् का काव्यात्मक रूप
सनातनपुत्र देवीदास विपुल “खोजी”
वापिस जाने के लिये अन्य ज्ञानवर्धक रोचक लेख के लिंक: 👇👇
परम संत प्रभु तुलसीदास से क्षमा याचना करते हुये उन महाकवि की इस स्तुति को काव्यात्मक रूप देने का दुस्साहस कर रहा हूं। प्रभु शिवशंकर मेरी सहायता अवश्य करेंगे। इसी विश्वास के साथ आज महाशिवरात्रि के पर्व पर काव्य संरचना प्रस्तुत करता हूं। कुछ शब्द गेयता हेतु जोड़े हैं।
हे मोक्षरूप हे विभो व्याप्त, हे जगतपिता तुम्हे नमस्कार।
हे सकल ब्रह्म स्वामी जग के, हे वेद रूप तुम्हे नमस्कार॥
गुण दोष परे हे भेद रहित, आच्छादित वस्त्र नभ नमस्कार।
स्वरूप चेतन इच्छा विहीन, निरीह न विकल्प तुम्हे नमस्कार॥
जिनका कोई आकार नहीं, ॐकार मूल तुम्हे नमस्कार।
वाणी विज्ञान इन्द्री से परे, कैलाशपति तुम्हे नमस्कार॥
जो महाकाल हैं बने काल , विकराल प्रभु तुम्हे नमस्कार।
संसार परे जो महा ईश्वर, हैं परम कृपालु तुम्हे नमस्कार॥
गिरिराज हिमालय सम समान, गम्भीर धीर तुम्हें नमस्कार।
कटि कमान कामदेव लजा, ज्योति स्वरूप तुम्हें नमस्कार॥
जिनके सिर गंग विहंग सदा, ग्रीवा पर शोभित सर्प सदा।
जिनके ललाट चंद्रमा साजे, मंगलकारी तुम्हें नमस्कार॥
कुण्डल शोभित जो कर्ण हिले, सुन्दर भ्रुकुटी तुम्हें नमस्कार।
नील कंठ विशाल नेत्र प्रभु, हैं प्रसन्न मन तुम्हें नमस्कार॥
जो परम दयालु जग के नाथ, कल्याणकारी तुम्हें नमस्कार।
हूं शिव शंकर की शरण सदा, भक्त वत्सल तुम्हें नमस्कार॥
जो रौद्र रूप हैं श्रेष्ठ सदा, अजन्म अखंड तुम्हें नमस्कार।
करोड़ों सूर्य सम दें प्रकाश, त्रैशूल हरन तुम्हें नमस्कार॥
निर्मूल मूल संग है त्रिशूल, पार्वती पति तुम्हें नमस्कार।
तेजस्वी प्रेम से प्राप्त सदा, परमेश्वर शंकर को नमस्कार॥
जो कला परे कल्याण रूप, कलपान्त कारक तुम्हें नमस्कार।
जो दे आन्नद सज्जन को सदा, सच्चिदानन्द तुम्हें नमस्कार॥
हे त्रिपुर रक्षक मोह के भक्षक, मन मन्थक प्रभु प्रसन्न होवें।
जिन भस्म किया प्रभु कामदेव, कर कोटि कोटि तुम्हें नमस्कार॥
जब तक पार्वती पति चरण न भज, कभी शांति नहीं मिल सकती है।
तब तक न हो जीव ताप नाश, शांति प्रदाता तुम्हें नमस्कार॥
सब ह्रदय निवासी कैलाशवासी, मुझ मूरख पर अब प्रसन्न हो।
कर जोर भयातुर भक्त सुनो, प्रभु बारम्बार तुम्हें नमस्कार॥
नहीं योग पता हे योग पति, न पूजा विधि अर्चन है पता।
है शम्भू सदा तुमको भजता, करता रहता तुम्हें नमस्कार॥
इस जरा देह भय से व्याकुल, हूं शरण विपुल तेरी प्रभुवर।
अब मुक्त करो दुख: जनम मरण, हे शिवशम्भो तुम्हें नमस्कार॥
भगवान रूद्र की स्तुति कर, ब्राम्हण तुलसी ने है गाया।
जो जन रूद्राष्टक पाठ करे, हो प्रसन्न शम्भू ये ही गाया॥
है दास विपुल शिवरात्रि दिवस, शिव शंकर प्रभु का याचक है।
भक्तन सब सुख निरवाण विपुल, हर शब्द संग तुम्हें नमस्कार॥
इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं व देवीदास विपुल काव्य रूपांतरण सम्पूर्णम् ।
रावण कृत शिव तांडव स्त्रोत का हिंदी काव्य रूपान्तर
गायत्री माता : जाने के लिये लिंक को दबायें
No comments:
Post a Comment