Sunday, January 5, 2020

जैसी करनी वैसी भरनी

जैसी करनी वैसी भरनी



जैसी करनी वैसी भरनी।

नाम सार्थक जो थी लंकिनी।।

रावण की वह तो रक्षक थी।

सज्जनो की ही भक्षक थी।।

शायद उसकी करनी इतनी।

पाप घड़ा भर डाला था।।

पाप का उसके अंत हुआ।

राम बहुत दिल वाला था।।

अब ढूँढो हनुमान कहाँ है।

जिसने लंका उसकी ढाई।।

आओ नमन करें हनुमन्त को।

स्मरण सिया राम दोहाई।।

विपुल लखनवी।



No comments:

Post a Comment