Tuesday, January 21, 2020

वे चुप कैसे रह पायें

वे चुप कैसे रह पायें

 

 

देवीदास विपुल उर्फ  

विपुल सेन “लखनवी”

 नवी मुंबई 

 

अगर देश में आग लगी हो, हम कैसे चुप रह पायें।

अगर देश का भविष्य है संकट,  हम कैसे चुप रह पायें।

अगर देश के गद्दारों संग,  देश निवासी हैं आयें।

इन गद्दारों के डर से हम,  अब चुप कैसे रह पायें।।


सदियों से हम चुप बैठे हैं,  अत्याचार के डंक सहे।

तुमसे मतलब न है कोई,  भाई अपने यही कहे।।

टुकड़े कितने हुये देश के,  यह इतिहास उठा देखो।

टुकड़े भारत के होगें सुन,  हम कैसे चुप रह पायें।।


हमको बांट दलित हिंदू में,  देश के टुकड़े कर डाले।

फूट डालकर हमें लड़ाया,  भरतवंशी भोले भाले।।

आज पुन: सब सामने दिखता,  भाई भाई विरोध करें।

षड़यंत्र ऐसा देख के कैसे,  हम कैसे चुप रह पायें।।


इसका कारण यही समझते,  हम अंधे गूंगे हैं बनते । 

कोई जगाये हमको कितना, चादर ओढ़ सोये रहते॥

नहीं समझते दुश्मन चालें, आपस में भिड़ भिड़ जायें।।

जिनका खून नहीं पानी है,  वे चुप कैसे रह पायें।।


कलम विपुल की सच बोलेगी, जो देखेगी वो लिखती।

नहीं पता क्या राजनीति है,  सत्य बात सबको चुभती।।

नहीं चाह हमको कुछ भी है, कलम विपुल की ललकारे।

जिनको सत्ता लालच न हो,  वे कैसे चुप रह पायें।।


1 comment:

  1. Satta ka lalach hee sarvoparee man mein kuch aur vaanee mein kuch aur and kartavya karnay mein kuch aur.... divide n rule is in dangerous stage... Please share more poems

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