Wednesday, January 29, 2020

एक शाम हरकोर्टियन्स मित्रों के नाम

एक शाम हरकोर्टियन्स मित्रों के नाम 

विपुल सेन उर्फ लखनवी, वर्ष: 1982

पढ़ किताब नंबर बढ़ा डाला, बिंद मोतिया भी कर मानें।

आखिर में ऑप्रेशन करवाया, कुछ हरकोर्टियन्स मित्रों ने।।


नहीं काम तब ग्रुप को बनाया, पोस्ट ही लिखते रहते हैं।

अतुल्य समय को यूंहि गंवाया, कुछ हरकोर्टियन्स मित्रों ने।।


बीबी पर बस नहीं  चला जब, जूनियर को गरियाते हैं।

धौंस पट्टी को यूंही जमाया, कुछ हरकोर्टियन्स मित्रों ने।।


हरकोर्टियन्स को भूले बैठे, ऊंचा ओहदा पाकर के।

बाद रिटायरमेंट गीत सुनाया, कुछ हरकोर्टियन्स मित्रों ने।।


एच.बी.टी.आई. को भूल गये, सपने में आता होगा।

वहीं सम्मान अचीवमेंट पाया, कुछ हरकोर्टियन्स मित्रों ने।।


चाय पर चर्चा शुरू हुई और, खत्म हुई जो दारू पर।

दारू में पानी मिलवाया, कुछ हरर्कोटियन्स  मित्रों ने।।

 

शेरो शायरी तो शुरू हुई,  पर खत्म हुई मां बहनों पर।

दोस्ती का आयाम बनाया,  कुछ हरर्कोटियन्स  मित्रों ने।।


खाना अच्छा बना हुआ था, जमकर खाया सब लोगों ने।

टेबल पर रायता फैलाया,  कुछ हरर्कोटियन्स  मित्रों ने।।


विपुल तो चुपचाप था बैठा, नहीं था मेंबर किसी ग्रुप का।

मुंबई से उसको बुलवाया  कुछ हरर्कोटियन्स  मित्रों ने।।


बड़ी ऊंची स्टेज बनवाई, जाने फिर भी क्यों हूट हुए।

विपुल लखनवी को तुरन्त बुलाया, कुछ  हरकोर्टियन्स मित्रों ने।।


अपने भी क्या दिन थे यारों, मुर्गा मुर्गी बनकर खेले।

याद सुनाई आंखे भरकर,  कुछ  हरकोर्टियन्स मित्रों ने।।

                 😁😁😁😁😁😆😆👻👻🤓🤩😂🤣🤣

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