Thursday, January 2, 2020

मैं चला था थूकने उस चांद पर ।। काव्य ।।




मैं चला था थूकने उस चांद पर ।। काव्य ।।

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
मो.  09969680093
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मैं चला था थूकने उस चांद पर।
दे रहा था चांदनी जो इस जगत को॥

मांगता मोल कुछ भी इस धरा से।
कर रहा था बस वो अपने काम को॥

सहन मुझको हुआ व्यवहार यह।
द्वैष ईर्ष्या मन में मेरे भर गई॥

क्यों जगत है देखता उस चांद को।
रात में बस चांदनी ही खिल गई॥

मैं अहम में चूर हूं सूरज बना हूं।
क्यों नहीं मुझको जगत में देखते॥

वह निरा कमजोर शीतल बना।
मुझको को ही सब क्यों नहीं है पूजते॥

पर मैं भूला एक नियम संसार का।
सूरज भी ढल जाता है हर शाम को॥

चांद की शीतलता प्रेमल गाथा बनें।
शांत हो मन देखकर उस बाम को॥

प्रकृति के इस प्रांगण में चांद सुंदर।
प्रेयसी  के कुछ भाव रचते हैं मनहर॥

जो कवि की कल्पना के क्षितिज बनकर।
विरह की अनुभूति अपने साथ लेकर॥

जगत के इस ताप के संताप को हर।
दे रहा कुछ रोशनी चाहे न प्रखर॥

पर विपुल यह मन समझे सत्य क्या।
वह असत्य और झूठ को गाता  फिरा।।

और अंतत: यह हुआ कुछ इस तरह।
थूक मेरा ही मेरे मुंह पर गिरा॥



MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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